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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड है । तत्पश्चात् भ्रमण करते हुए दोनों सूर्यों में परस्पर कितना अन्तर रहता है, कितने द्वीप-समुद्रों का अवगाहन करके सूर्य भ्रमण करता है, एक रात-दिन में वह कितने क्षेत्र में घूमता है इत्यादि विषयों का यहाँ वर्णन है । इसके अतिरिक्त, यहाँ सूर्य के उदय-अस्त, ओज तथा चन्द्रसूर्य के आकार, परिभ्रमण आदि, नक्षत्रों के गोत्र, सीमा और विष्कंभ, तथा सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारों की गति का उल्लेख किया गया है।'
विवाहपटल (विवाहपडल ) ज्योतिषविद्या का एक ग्रन्थ था जो विवाहवेला के समय काम में आता था। अर्घकांड ( अग्घ कंड ) में माल के बेचने और खरीदने के सम्बन्ध में चर्चा थी। इनका उल्लेख निशोथचूर्णी में किया गया है। योनिप्राभृत' ( जोणिपाहुड ) और चूडामणि का उल्लेख भी प्राचीन जैन ग्रन्थों में मिलता है। ये दोनों निमित्तशास्त्र के ग्रन्थ थे । चूडामणि के द्वारा भूत, भविष्य और वर्तमान काल का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था।' धार्मिक उत्सवों का समय और स्थान निर्धारण करने के लिए ज्योतिष का ज्ञान आवश्यक समझा जाता था ।'
१. देखिए विंटरनोत्स, हिस्ट्रो वि इंडियन लिटरेचर, जिल्द २, पृ० ४५७; तथा थीबो, ऑस्ट्रोनोमिक ऑस्ट्रोलोजिक एण्ड मैथेमैटिक इन बुहलरकीलहानस् ग्राउन्ड्रेस डेर इण्डो-एरिसचेन फाइलोलौजी; जरनल ऑव ऐशियाटिक सोसायटी वि बंगाल, जिल्द ४९, भाग १, १८८०; सुकुमार रंजनदास, स्कूल ऑव ऑस्ट्रोनौमी, इंडियन हिस्टोरिकल क्याटलों, जिल्द ८, पृ० ३० आदि, पृ० ५६५ आदि । बौद्धों के ज्योतिष के परिचय के लिए देखिए डाक्टर ई० जे० थामस का 'सूर्य, चन्द्र और तारे' नामक लेख (बुद्धिस्ट स, हैस्टिंग्स को ऐनसाइक्लोपीडिया ऑव रिलीजन एण्ड एथिक्स )।
२. १३; पृ० ४००; तथा देखिये बृहत्कल्पभाष्य ४.५११४ टीका ।
३. ४, पृ० २८१; बृहत्कल्पभाष्य १.१३०३; तथा पिंडनियुक्तिभाष्य ४४-४६ पृ० १४२; सूत्रकृतांगटोका ८, पृ० १६५ अ; जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ६७३ ।
४. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १.१३१३ ।
५. जम्बूद्वीपटीका पृ० २; तुलना कीजिए दीघनिकाय १, ब्रह्मजालसुत्त पृ० ११ । यहां बौद्ध भिक्षुओं के लिए ज्योतिषविद्या तथा अन्य कलाओं का अध्ययन निषिद्ध माना है।