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च० खण्ड ] पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान सम्मिलित नहीं किये जाते थे ।' कुछ विद्वानों का कथन है कि ब्राह्मी किसी लिपि विशेष का नाम नहीं था, बल्कि १८ लिपियों के लिए यह सामान्य नाम प्रयुक्त किया जाता था।
अन्य लिपियां कुछ लिपियां किसी विषय को गुप्त रखने, या वैद्य, ज्योतिषी और मंत्र-वादियों द्वारा संक्षिप्त करके किये गये वर्ण-परिवर्तन के साथ प्रादुर्भूत हुई मानी जाती हैं। उदाहरण के लिए, चाणक्य और मूलदेव राजमान्य विद्वान् थे, इसलिए चाणक्यी और मूलदेवी दोनों लिपियों को अत्यन्त प्राचीन समझा जाता है। ये दोनों लिपियां नागरी लिपि के वर्णपरिवर्तन मात्र से हो उन्पन्न हुई हैं। इस प्रकार की लिपियां वात्स्यायन के कामसूत्र की ६४ कलाओं में 'म्लेच्छित' लिपियों में गिनाई गई हैं।
शेष लिपियों के विषय में अभी तक विशेष जानकारी नहीं मिली है।
अर्धमागधी भाषा __ भाषार्यों का उल्लेख पहिले किया जा चुका है। ये लोग अर्धमागधी बोलते थे और ब्राह्मी लिपि से परिचित थे। भगवान् महवीर ने अर्धमागधो में अपने निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश दिया था। बाल, वृद्ध और अनपढ़ लोगों पर अनुकम्पा करके, उनके हितार्थ समदर्शियों ने इस भाषा में प्रवचन किया था,६ तथा यह भाषा आर्य, अनार्य और पशु-पक्षियों तक को समझमें आ सकती थी। वाग्भट ने लिखा है. कि हम उस वाणी को नमस्कार करते हैं, जो सबकी अर्धमागधी
१. सूत्र ४६. पृ० ६५ । २. तथा देखिए, पुण्यविजय, वही, पृ०५ । ३. पुण्यविजय, वही, पृ० ६-९ टिप्पणी। ४. प्रज्ञापना १.३७ । ५. समवायांग, पृ० ५७; औपपातिक सूत्र ३४, पृ० १४६ । ६. आचारांगचूर्णी, पृ० २५५ ।।
७. समवायांग, वही; औपपातिकसूत्र, वही। बौद्धों की विभंग अट्ठकथा, पृ० ३८७ आदि में बताया है कि यदि बालकों को बचपन से कोई भाषा न सिखायी जाये तो वे स्वयं ही मागधी भाषा बोलने लगते हैं। यह भाषा नरक, तियंच, प्रेत, मनुष्य और देवलोक में समझी जाती है।