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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
ब्राह्मी और खरोष्ट्री लिपियाँ
ब्राह्मो और खरोष्ट्री लिपियों का उल्लेख जैन और बौद्ध सूत्रों में मिलता है ।' ब्राह्मी लिपि बायें से दाहिने और खरोष्ट्री दाहिने से बायें लिखी जाती थी । खरोष्ट्रो लिपि का प्रादुर्भाव ई० पू० ५ वीं शताब्दी में अरमईक लिपि में से होना स्वीकार किया जाता है । यह लिपि उस समय भारत के उत्तर-पश्चिम में प्रचलित थी, और गंधार की स्थानोय लिपि समझो जाती थी । आगे चलकर खरोष्ट्री शनैः-शनैः अदृश्य हो गयी और उसका स्थान ब्राह्मी ने ले लिया, जिससे कि देवनागरी वर्णमाला का विकास हुआ। बुहलर के अनुसार, अशोक के अधिकतर शिलालेख ब्राह्मी लिपि में ही लिखे गये हैं। उनका कथन है कि ब्राह्मी की वर्णमाला ध्वनि-शास्त्रियों अथवा वैयाकरणों द्वारा वैज्ञानिक उपयोग के लिए स्थापित की गयी थी । 3
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[ च० खण्ड
जैनसूत्रों में १८ लिपियों में सबसे पहले ब्राह्मी को स्थान दिया गया है । कहते हैं कि ऋषभदेव ने अपने दाहिने हाथ से अपनी पुत्री
को इस लिपि की शिक्षा दी, इसीलिए यह ब्राह्मी कहलायी । व्याख्याप्रज्ञप्ति में इसे आदरपूर्वक नमस्कार किया गया है । समवायांग में उल्लेख है कि इस लिपि में ४६ मूल अक्षर ( माउयाक्खर = मातृकाक्षर) थे जिनमें ऋ, ऋ, लृ, लृ और " अक्षर
१. ललितविस्तर, पृ० १२६ आदि में ६४ लिपियों में सबसे पहले ब्राह्मी और खरोष्ट्री का उल्लेख है ।
२. पुण्यविजय, भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखनकला, पृ० ८ । ३. ओझा, वही, पृ० १७–३६, १, ४, राइस डैविड्स, बुद्धिस्ट इंडिया, पृ० १२४ । प्राकृत धर्माद खरोष्ठी लिपि में, ईसवी सन् २०० में लिखा गया है । इसकी भाषा पश्चिमोत्तर प्रदेश की बोलियों से मिलती-जुलती है। खरोष्ठी के लेख चीनी और तुर्कतान में भी मिले हैं। इन लेखों की भाषा का मूलस्थान पेशावर के आसपास पश्मिोत्तर प्रदेश माना जाता है। ये लेख ईसवी सन् की लगभग तीसरी शताब्दी के माने गये हैं, जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० १५-१६ ।
४. अभयदेव की टीका, सूत्र २ पृ० ४ - अ । पुण्यविजयी का मत है कि जैन आगम पहले ब्राह्मी में ही लिपिबद्ध किये गये थे, वही, पृ०५ ।
पर क्ष स्वीकार करते हैं,
५. डाक्टर गौरीशंकर ओझा ळ के स्थान वही, पृ० ४६ ।