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च० खण्ड ]
पांचवाँ अध्याय : कला और विज्ञान
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पश्चात् काकिणी रत्न द्वारा अपना नाम पर्वत पर लिखते थे ।" सार्थ के लोग भी अपनी यात्रा के समय शिला आदि पर मार्गसूचक में निशान बना दिया करते थे जिससे यात्रियों के गमनागमन में सुविधा हो ।' युद्ध में संलग्न होने के पूर्व शत्रु के पास दूत द्वारा पत्र भेजने का रिवाज था, इसकी चर्चा की जा चुकी है। राजमुद्रा से मुद्रित पत्र और कूटलेख का उल्लेख मिलता है ।" गुप्त लिपि में प्रेमपत्र लिखे जाते थे ।"
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अष्टादश लिपियां
निम्नलिखित १८ लिपियों का उल्लेख मिलता है :: :: - बंभी (ब्राह्मी), जवणालिया अथवा जवणाणिया ( यवनी ), दोसाउरिया, खरोट्टिया ( खरोष्ठी), पुक्खरसारिया ( पुष्करसारि ), पहराइया, उच्चतरिया', अक्खरपुट्ठिया, गणितलिपि, भोगवयता, वेणतिया, निण्हइया, अंकलिपि, गंधव्वलिपि ( भूतलिपि), आदंसलिपि (आदर्श), माहेसरीलिपि, दामिलीलिपि ( द्राविड़ी ) और पोलिंदीलिपि ।
था । भारत में पत्र और वल्कलों पर लिखा जाता था । ये लेख स्याही का उपयोग किये बिना, उत्कीर्ण करके लिखे जाते थे, राइस डैविड्स, बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० ११७ ।
१. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ३.५४ । बौद्ध साहित्य के उल्लेखों के लिए देखिए राइस डेविड्स, बुद्धिस्ट इंडिया, पृ० १०८ ।
२. आवश्यकटीका ( हरिभद्र ), पृ० ३८४ -अ।
३. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका १९५; निशीथचूर्णी ५, पृ० ३६१ ।
४. उपासकदशा १, पृ० १० ।
५. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १९१ - अ; निशीथसूत्र ६. १३; ६.२२६२ । ६. प्रज्ञापना १, ७१, पृ० १७६ में उच्चतरिया के स्थान पर अन्तक्खरिया ( अन्ताक्षरी ), उयन्तरिक्खिया या उयन्तरक्खरिया, तथा आदंस के स्थान पर आयास क्रा उल्लेख है, जैनचित्रकल्पद्रुम, पृ० ६ ।
७. समवायांग, पृ० ३३ । विशेषावश्यकभाष्य की टीका ( ४६४ ) में निम्नलिखित लिपियों का उल्लेख है : - हंस, भूत, यक्षी, राक्षसी, उड्डी, यवनी, तुरुष्की, कीरी, द्राविडी, सिंधबीय, मालविनी, नागरी, लाटी, पारसी, अनिमित्ती, चाणक्यी और मूलदेवी । अङ्क, नागरी, चाणक्यी और मूलदेवी लिपियों के लिए देखिए पुण्यविजय, वही, पृ० ६ नोट । अन्य सूची के लिए देखिए लावण्यसमयगणि, विमलप्रबन्ध, पृ० १२३; लक्ष्मीवल्लभ उपाध्याय, कल्पसूत्र, टीका; एच० आर० कापड़िया, वहीं, पृ० ९४ ।