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च० खण्ड] चौथा अध्याय : शिक्षा और विद्याभ्यास २९३ चर्दतुश विद्याओं का अध्ययन किया। विद्याध्ययन के पश्चात् जब वह अपने घर लौटा तो नगर ध्वजा-पताकाओं से सज्जित किया गया। नगर का राजा स्वयं उसका आदर-सत्कार करने के लिए उपस्थित हुआ, और उसने रक्षित के गले में हार पहनाया। हाथी पर सवार होकर रक्षित अपने घर आया। रक्षित का घर चन्दन-कलश आदि से खूब सजाया गया था। उसने घर में प्रवेश किया, तथा बाहर की उपस्थानशाला में बैठकर लोगों के उपहार स्वीकार किये । उसका घर द्विपद, चतुष्पद, हिरण्य और सुवर्ण आदि से भर गया। रक्षित के मित्र और स्व जन सम्बधी उसने मिलकर अत्यन्त प्रसन्न हुए।
महावीर का लेखशाला में प्रवेश भगवान् महावीर जब आठ वर्ष के हुए तो सिद्धार्थ राजा ने उन्हें लेखशाला में भेजने का महोत्सव मनाया। नैमित्तकों को बुलाकर उसने मुहूर्त निकलवाया और स्वजनों को निमंत्रित कर भोजन आदि से उनका सत्कार किया। तत्पश्चात् वाग्देवी की प्रतिमा के पूजन के के लिए उसने नाना रत्नों से जटित सुवर्ण के आभूषण बनवाये। अध्यापक को बहुमूल्य वस्त्राभूषण तथा नारियल आदि भेंट में दिये । लेखशाला के विद्यार्थियों को मषिपात्र, लेखनी, और पट्टो आदि दो, तथा द्राक्षा, खंडशर्करा, चिरौंजी और खजूर आदि वितरण की । तत्पश्चात् तीर्थजल से स्नान कर, सर्वालंकार से विभूषित हो, महाछत्र धारण किये हुए, चामरों से वोज्यमान, चतुरंग सेना से परिवृत, गाजे-बाजे के साथ महावीर ने शाला में प्रवेश किया।
इसी प्रकार मेघकुमार और दृढ़प्रतिज्ञ आदि के विद्याध्ययन के सम्बन्ध में कहा गया है। ७२ कलाओं की शिक्षा प्राप्त कर जब मेषकुमार घर लौटा तो उसके माता-पिता ने कलाचार्य को विपुल वस्त्र, गंध, माल्य और अलंकार आदि प्रदान कर, मधुर वचनों से उसका सत्कार किया, और उसे जीवन-भर के लिए प्रीतिदान दिया।
पाठ्यक्रम वेद भारतीय साहित्य को सबसे प्राचीन पुस्तक मानी जाती है, अतएव वेदों का अध्ययन आवश्यक था। प्राचीन जैनसूत्रों में ऋग्वेद,
१. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० २२-अ। २. कल्पसूत्रटीका ५, पृ० १२० । .. ३. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० २२ ।