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२९४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड यजुर्वेद और सामवेद इन तीन वेदों का उल्लेख मिलता है।' वैदिक ग्रन्थों में निम्नलिखित शास्त्रों का उल्लेख है :-छह वेदों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथववेद, इतिहास (पुराण ) और निघंटु छह वेदांगों में संख्यान ( गणित ), शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त
और ज्योतिष; छह उपांगों में वेदांगों में वर्णित विषय और पष्ठितंत्र । उतराध्ययनसूत्र को टीका में निम्नलिखित चतर्दश विद्यास्थानों को गिनाया गया है :-छह वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र ।
इसके पश्चात् , जैन आगमों में अर्वाचीन माने जाने वाले अनुयोगद्वार और नन्दिसूत्र में नीचे लिखे लौकिक श्रुत का उल्लेख किया गया है:-भारत, रामायण, भीमासुरुक्ख, कौटिल्य ( कोडि
१. स्थानांग ३.१८५ । जैन परम्परा के अनुसार, भरत ने आर्य वेदों की रचना की थी जिनमें तीर्थङ्कर की स्तुति, यतिधर्म, श्रावकधर्म और शान्तिकर्म आदि का उल्लेख था । उसके पश्चात् सुलसा, याज्ञवल्क्य, तंतुग्रीव आदि ने अनार्य वेदों का निर्माण किया । ये ही वेद आजकल उपलब्ध हैं, आवश्यकचूर्णी, पृ० २१५; सूत्रकृतांगचूर्णी, पृ० १६; वसुदेवहिण्डी पृ० १८२ आदि । दूसरी परम्परा के अनुसार, द्वादश अंग को ही वेद कहा है, आचारांगचूर्णी, पृ० १८५ ।
२. व्याख्याप्राप्ति २.१; औपपातिक ३८, पृ० १७२। देखिये दीघनिकाय १, अंबहसुत्त, पृ० ७६ ।
३. ३, पृ० ५६-अ । मिलिन्दप्रश्न, पृ० ३ में १९ शिल्पों का उल्लेख है-सुति, सम्मुति, संख्या, योगा, नीति, विसेसिका, गणिका (गणित), गंधव्वा, तिकिच्चा (चिकित्सा ), चतुव्वेद, पुराण, इतिहास, जोतिसा, माया, हेतु, मंतणा, युद्ध, छन्दसा, मुद्दा; दीघनिकाय १, ब्रह्मजालसुत्त, पृ० ११ । तुलना कीजिए याज्ञवल्क्यस्मृति १. ३; महाभारत १२.१२२.३१ आदि ।
४. सूत्र ४० आदि । ५. सूत्र ४२, पृ० १९३-अ।
६. रामायण और महाभारत पूर्वाह्न या अपराह्न में पढ़े जाते थे। दोनों को भावावश्यक ( आवश्यक क्रियाएं ) के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है, अनुयोगद्वारसूत्र २५, पृ० २५-२६ । निशीथचूर्णी ११.१० की चूर्णी में भारत और रामायण को पापश्रुत कहा है। __७. भंभी और आसुरुक्ख का उल्लेख व्यवहारभाष्य, १ पृ० १३२ में मिलता है । यहां माठर कौण्डिन्य की दण्डनीति का भी उल्लेख है। तथा