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च० खण्ड] चौथा अध्याय : शिक्षा और विद्याभ्यास २९१ ने समझा कि आभीरी ने घड़ा पकड़ लिया है। आभीरी ने समझा कि अभी वह उसी के हाथ में है। इतने में घड़ा गिरकर फूट गया। आभीरी कहने लगी-"तुमने ठीक नहीं पकड़ा, इसलिए फूट गया।" आभीर ने कहा-"तमने ठीक नहीं पकड़ा।" इस तरह दोनों में झगड़ा होने लगा। आभीर ने गाड़ी से उतरकर आभीरी को खूब पीटा । जो घी बाकी बचा था, उसे कुछ कुत्ते चाट गये और कुछ जमीन पी गयी। इस बीच में दूसरे व्यापारी अपना-अपना घी बेचकर चले गये। इन दोनों ने भी अपने बचे हुए घो की बिक्री को, लेकिन उन्हें बहुत कम लाभ हुआ। इसी प्रकार जो शिष्य अपने आचार्य के प्रति निष्ठुर वचन कहता हुआ कलह करता है, वह कभी प्रशस्त नहीं कहा जा सकता।
विद्यार्थी जीवन प्राचीन युग में विद्यार्थियों के भोजन-वस्त्र और रहने-सहने का क्या प्रबन्ध था, इस विषय का ठीक-ठोक पता नहीं चलता। लेकिन जान पड़ता है कि विद्यार्थी सादा जीवन व्यतीत करते थे। कुछ विद्यार्थी अध्यापक के घर रहकर पढ़ते, और कुछ नगर के धनवन्तों के घर अपने रहने-सहने और खाने-पीने का प्रबंध कर लेते थे। शंखपुर का अगडदत्त नाम का राजकुमार वाराणसी पहुँचा और कलाचार्य के घर रहता हुआ विविध कलाओं को शिक्षा प्राप्त करने लगा। कौशाम्बी नगरी में जितशत्र नाम का राजा राज्य करता था। उसने चतुर्दश विद्याओं में पारंगत काश्यप नाम के ब्राह्मण को अपने यहाँ नियुक्त कर रक्खा था। लेकिन उसकी मृत्यु हो गयी और उसकी जगह राजा को दूसरा ब्राह्मण नियुक्त करना पड़ा। काश्यप के पुत्र का नाम कपिल था । अपने पिता को मृत्यु के पश्चात् , उसने मन लगाकर विद्याध्ययन करने का निश्चय किया, लेकिन वहाँ ईर्ष्या के कारण, उसे कोई पढ़ाने के लिए तैयार न हुआ। उसे श्रावस्ती पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ भिक्षावृत्ति करने के साथ-साथ विद्याध्ययन उसके लिए कठिन हो गया। अतएव उपाध्याय ने नगर के किसी श्रीमन्त के घर उसके रहने और
१. आवश्यकनियुक्ति १३९; आवश्यकचूर्णी, पृ० १२१-२४; बृहत्कल्पभाष्य, पीठिका ३३४-३६१ । शिष्य द्वारा आचार्य को वंदन करने के सम्बन्ध में देखिये वही, ३.४४७१-९५। ..
२. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ८३ अ आदि ।