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२८४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड
बुद्धिल की कन्या रयणावई राजकुमार ब्रह्मदत्त को देखकर उसकी ओर आकृष्ट हुई। किसी पारिवाजिका के हाथ उसने राजकुमार के नाम एक पत्र भेजा । उसने राजकुमार के मित्र वरधणु के पास पहुँच, उसके सिर पर अक्षत और पुष्प फेंककर, 'उसे सहस्त्र वर्ष जीवित रहने का आशीर्वाद दिया, और उसे एकान्त में ले जाकर रयणावई को की इच्छा व्यक्त की । ब्रह्मदत्त ने रयणावई के पत्र का उत्तर दिया और उसे लेकर परिव्राजिका वापिस आयो । ___ पुरुष भी परिव्राजिकाओं द्वारा प्रेम का सन्देश भिजवाते थे। कोई युवती नदी पर स्नान करने गयी हुई थी। एक युवक उसे देखकर मुग्ध हो गया। पहले तो उसने बालकों को फल आदि देकर उसके घर का पता लगाया, और फिर एक परिब्राजिका को उसके घर भेजा। परिव्राजिका जब युवती के घर पहुँची तो वह बतेन धो रही थी। परित्राजिका की बात सुनकर उसे गुस्सा आया और बर्तन धोते-धोते उसने स्याही लगे हुए अपने हाथों से उसकी कमर पर एक जोर का थप्पड़ मार उसे भगा दिया ।
कभी स्त्रियाँ अपने पति को प्रसन्न करने के लिए अथवा पुत्रोत्पत्ति के लिए भी परिव्राजिकाओं की शरण लेती थीं। तेयलोपुत्र अमात्य की पत्नी पोट्टिला अपने पति को इष्ट नहीं थी। वह वियुल अशन, पान आदि द्वारा श्रमण, ब्राह्मण आदि का सत्कार करके अपना समय यापन किया करती थी। एक दिन सुव्रता नाम की आर्यिका वहाँ आयी । पोट्टिला ने भिक्षा देकर उसका सत्कार किया। तत्पश्चात् उसने निवेदन किया-"आप बहुत अनुभवी हैं, बहुश्रुत है, दूर-दूर भ्रमण करती हैं। कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे मेरे पतिदेव मुझसे प्रसन्न रहने लगें। यदि आपके पास कोई चूर्ण, मन्त्र, गुटिका, औषधि आदि हो जिससे कि मेरे पति आकृष्ट हो सकें, तो दीजिये।” यह सुनकर सुव्रता ने अपने कानों पर हाथ रक्खे और वहाँ से चलती बनी।
१. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १९१-अ आदि ।
२. दशवैकालिकचूर्णी २, पृ० ९० । तथा देखिये चकलदार, वही, अध्याय ५, पृ० १८४ ।
३. ज्ञातृवर्मकथा १४, पृ० १५१ आदि; निरयावलि ३, पृ० ४८ आदि । तुलना कीजिये कथासरित्सागर जिल्द ३, अध्याय ३२, पृ० ९९ आदि ।