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च० खण्ड ] तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति २८३ राजा गर्दभिल्ल द्वारा अपहरण कर अपने अन्तःपुर में रखने का उल्लेख किया जा चुका है । भृगुकच्छ के एक बौद्ध वणिक के सम्बन्ध में कहा है कि कतिपय संयतियों के रूप-लावण्य से आकृष्ट हो, उसने जैन श्रावक बनकर कपटभाव से उन्हें अपने अपने जहाज ( वहणट्ठाण) में चैत्यवन्दन के लिए आमन्त्रित किया । लेकिन जैसे ही उन्होंने जहाज में पैर रखा कि जहाज चल पड़ा ।' ___साध्वियों को चोर भी कष्ट पहुँचाते थे। कभी वे बोधिय म्लेच्छों के साथ मिलकर उन्हें उठा ले जाते ।२ कभी वे उनके वस्त्रों का अपहरण कर लेते। ऐसी अवस्था में कहा गया है कि संयतियों को चर्मखण्ड, शाक के पत्ते, दर्भ तथा अपने हाथ द्वारा अपने गुह्य प्रदेश की रक्षा करनी चाहिए । इस सम्बन्ध में मग्गपाली नाम की संयती का उदाहरण दिया गया है ।
साध्वी-परिवाजिकात्रों द्वारा दौत्य-कर्म जैनसूत्रों में ऐसी कितनी ही परिव्राजिकाओं का उल्लेख है जो प्रेम-संदेश ले जाने का काम करती थीं। मिथिला की चोक्खा परिब्राजिका चार वेद तथा अन्य शास्त्रों की पण्डिता थी और वह अनेक राजा, राजकुमार आदि को दानधर्म, शौचधर्म और तीर्थाभिषेक का उपदेश करती हुई विहार किया करती थी। एक दिन वह त्रिदण्ड, कुण्डिका आदि लेकर परिव्राजिकाओं के मठ से निकली तथा अनेक परिव्राजिकाओं के साथ राजा कुम्भक के कन्या-अन्तःपुर की ओर चली । वहाँ पहुँचकर वह मल्लीकुमारी के पास आयी। जल से सिंचित दर्भ के आसन पर वह बैठ गयी, और दान-धर्म का उपदेश देने लगी। उसने बताया कि जो कोई पदार्थ अशुचि हो वह मिट्टी और जल से साफ करने से शुद्ध हो जाता है। इस समय मल्लीकुमारी ने चोक्खा से कोई प्रश्न किया और उसका उत्तर न देने के कारण उसे अपमानित कर वहाँ से भगा दिया। वहाँ से चोक्खा पाञ्चाल देश के राजा जितशत्र के अन्तःपुर में पहुँची और वहाँ मल्ली के रूप-लावण्य का बखान कर राजा को उसे प्राप्त करने के लिए उकसाया।
१. वही १.२०५४ । २. व्यवहारभाष्य ७.४१६ । ३. बृहत्कल्पभाष्य १.२९८६; निशीथचूर्णी ५.१९८२। . ४. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १०८-११० ।