________________
२८२
जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ च० खण्ड टीका-टिप्पणी करने से बाज़ न आयें तो उनको समझाना चाहिए कि ऐसी संकट की स्थिति में उसका परित्याग कैसे किया जा सकता है ? कहना चाहिए कि किसी अनार्य पुरुष का यह कार्य है, हम इसमें क्या कर सकते हैं? उन्हें समझाने के लिए केशी और सत्य की' के उदाहरण देने चाहिए जो आर्थिकाओं के साथ पुरुष सहवास के बिना ही पैदा हुए थे। इन आर्यिकाओं का व्रतभंग इसलिए नहीं माना क्योंकि उनके परिणाम विशुद्ध थे तथा जैसे उन्मार्गगामी नदी कालान्तर में अपने मार्ग से बहने लगती है, और कंडे की अग्नि प्रज्वलित होकर कुछ समय बाद शान्त हो जाती है, वैसे ही यहाँ भी समझना चाहिए ।
जाता,
साध्वियों को अपहरण करने के उदाहरण भी जैनसूत्रों में मिल जाते हैं । कालकाचार्य को साध्वी भगिनी सरस्वती को उज्जैनो के
१. सुज्येष्ठा वैशाली के गणराजा चेटक की कन्या थी । प्रव्रज्या ग्रहण करने के बाद, एक दिन वह उपाश्रय में आतापना कर रही थी। इतने में पेढाल नामक कोई परिव्राजक अपनी विद्या देने के लिए किसी योग्य पुरुष की खोज में उपस्थित हुआ । उसने वहाँ कुहासा ( धूमिया ) पैदा कर सुज्येष्ठा की योनि में बीज डाल दिया । कालान्तर में उसके गर्भ से सत्यकी उत्पन्न हुआ, आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७५ ।
द्वारा गर्भधारण करने का
२. पाँच प्रकार से पुरुष के बिना भी स्त्रियों उल्लेख है –( १ ) परिधानवर्जित बैठी हुई स्त्री के शरीर में पुरुष का शुक्र अनायास ही प्रविष्ट हो जाये, (२) कोई पुत्रार्थी पुरुष अपने शुक्र को उसको योनि में प्रवेश कर दे, ( ३ ) यदि पुत्र की इच्छा से कोई श्वसुर इस प्रकार के कार्य में प्रवृत्त हो, ( ४ ) यदि रक्तनिरोध के लिए शुक्रकणों से लिप्त किसी वस्त्र को योनि-आच्छादन के काम में लिया जाय ( केशी की उत्पत्ति इसी प्रकार हुई थी ), (५) यह शुक्रमिश्रित जल को पीने के काम में लिया जाये, वृहत्कल्पभाष्य ३.४१२८-३९ । तुलना कीजिए मातंगजातक ( ४९७ ) ४, पृ० ५८६ के साथ | यहाँ उल्लेख है कि किसी मातंग ने अपने अंगूठे से अपनी पत्नी की नाभि का सर्श किया और वह गर्भवती हो गयी । तथा देखिए धम्मपद अट्ठकथा ३, पृ० १४५ । उप्पलवरणा के साथ श्रावस्ती के अंधकवन में किसी ब्रह्मचारी ने बलात्कार किया था, तब से भिक्षुणियों ने अंधकवन में रहना छोड़ दिया था, वही २, पृ० ४९, ५२ ।
३. बृहत्कल्पभाष्य ३.४१४७ ।,