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च० खण्ड] तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति २८१
और उसको वसति में घुसे चले आते । यह देखकर प्रधान गणिनी ने इस बात को आचार्य से निवेदन किया । आचार्य के आदेश से ससअ
और भसअ अपनी बहन के साथ उपाश्रय में रहने लगे। यदि एक भिक्षा को जाता तो दूसरा सुकुमालिया की रक्षा करता । दोनों भाई सहस्रमल्ल थे, अतएव यदि कोई उपद्रव करता तो उसे वे ठोकपीट कर ठीक कर देते।
ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जब कि गृहस्थ लोग साध्वियों को बहकाकर अपने वश में कर लेते, और उनसे बलात्कार कर बैठते । वे उन्हें देखकर हँसी-मजाक करते और तरह-तरह के गाने गाते। कोई उनकी शकल-सूरत की तुलना अपनी साली से और कोई अपनी भानजी से करता । एक बार किसी पुरुष ने किसी रूपवती साध्वी को देखा; उसका एक मित्र भी उसके साथ था। मित्र की पत्नी की मृत्यु हो गयी थी। पुरुष ने अपने मित्र से कहा-"यह तुम्हारे समान वय की है, इसके साथ तुम्हारा सम्बन्ध हो जाय तो कैसा रहे ?" उस साध्वो के समक्ष यह प्रस्ताव रक्खा गया गया, लेकिन उसने उन दोनों को फटकार कर भगा दिया । एक दिन, वह साध्वी संयोग से, उस मित्र के घर भिक्षा लेने गयी। मित्र ने धूर्तता वश उसका बड़ा आदर-सत्कार किया। अपनी मृत पत्नी के बाल-बच्चों को उसका चरण-स्पर्श करने को कहा और हमेशा आहार-आदि द्वारा उसका आतिथ्य करने का आदेश दिया। स्रो-स्वभाव के कारण साध्वी उसके फुसलाने में आ गयी, और फिर बार-बार के गमनागमन से दोनों का सम्बन्ध हो गया।
ऐसी परिस्थिति में विधान है कि इस रहस्य को तुरन्त गुरु से निवेदन करना चाहिए । यदि साध्वी गर्भवती हो गयी हो तो उसे संघ से बहिष्कृत नहीं करना चाहिए, बल्कि उस दुष्ट व्यक्ति को राजा आदि से कहकर दण्ड दिलवाना चाहिए, या स्वयं दण्ड देना चाहिए जिससे कि भविष्य में ऐसी घटना न घटे। यदि वह अज्ञात-गर्भा हो तो किसी श्रावक आदि के घर रख देना चाहिए । यदि कदाचित् उसके गभ का पता लग गया हो तो उसे उपाश्रय में रखना चाहिए और उसे भिक्षा के लिए न भेजना चाहिए। यदि फिर भी अगीतार्थ लोग
१. वही ४.५२५४-५९ । २. वही १, २६६९-७२ ।