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२८० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड
राजगृह को गोष्ठी भी इसी नाम से प्रसिद्ध थी। एक बार उसके छह सदस्य मोग्गरपाणि यक्ष के आयतन में क्रीड़ा करने गये। उन्होंने पुष्पार्चना करने के बाद, यक्ष-मंदिर में से अपनी मालिन के साथ निकलते हुए माली को देखा। उन्हें देखकर वे किवाड़ों के पीछे छिप गये। फिर माली को बाँधकर उसकी मालिन के साथ उन्होंने विषय-भोग किया।
साध्वी स्त्रियाँ साध्वियाँ महावीर के चतुर्विध संघ की एक महत्वपूर्ण अंग थीं। साधुओं को भाँति साध्वियाँ भी भिक्षा पर निर्भर रहती थीं, यद्यपि उनका जीवन अधिक कठोर था और साधुआं को अपेक्षा उन्हें अधिक अनुशासित और नियंत्रित जीवन बिताना पड़ता था। उनके लिए विधान है कि उन्हें साधुओं द्वारा अरक्षित दशा में अकेले नहीं रहना चाहिए, तथा संदिग्ध चरित्र वाले लोगों के साथ निवास नहीं करना चाहिए । जब वे भिक्षार्थ गमन करती तो तरुण लोग तरह-तरह के उपसर्ग करते, और उनके निवास स्थान ( वसति) में घुस बठते । उनका रक्तस्राव देखकर लोग उनका उपहास करते, कापालिक साधु उन्हें विद्या-प्रयोग द्वारा वश में करने की चेष्टा करते। इसीलिए साध्वियों को आदेश है कि केले की भाँति अपने-आपको वस्त्र आदि से पूर्णतया सुरक्षित रक्खें। लेकिन फिर भी तरुण लोग उन्हें सताने से नहीं चूकते थे। ऐसी दशा में साध्वियों को अपनी वसति का द्वार बन्द रखने का विधान किया गया है। यदि कदाचित् वसति के कपाट न हों तो रक्षा के लिए साधुओं को बैठना चाहिए, या फिर स्वयं साध्वियों को हाथ में डंडा लेकर द्वार पर उपस्थित रहना चाहिए जिससे कि उपद्रवकारो उपद्रव न कर सके। यदि फिर भी विषयलोलुप दुष्ट लोग किसी तरुण साध्वी का पीछा करने से बाज न आयें तो कोई सहस्रयोधी तरुण साधु साध्वी के वेश में उपस्थित होकर उन लोगों को दंड दे। वाराणसी के राजा जितशत्र की पुत्री सुकुमालिया ने ससअ और भसअ नाम के अपने दो भाइयों के साथ दीक्षा ग्रहण को थी । सुकुमालिया अत्यन्त रूपवती थी। जब वह भिक्षा के लिए जाती तो कुछ मनचले तरुण उसका पीछा करते
१. अन्तःकृद्दशा, ६, पृ० ३३ । २. वृहत्कल्पभाष्य ३.४१०६ आदि; १.२४४३ आदि; २०८५ ।