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________________ च० खण्ड] तोसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति २७७ नन्दिनी इसी प्रकार की एक गणिका थी जिसके रोग से आक्रान्त होने पर, उसकी जगह दूसरी गणिका स्थापित की गयी, और फिर उसका स्थान तीसरी गणिका को मिला ।' इन वेश्याओं के पास हर किसो को जाने की छूट नहीं थी। उनका प्रेम किसी एकाध पुरुष पर ही केन्द्रित होता और उसके परदेश चले जाने पर वे कुल-वधू को भांति एकवेणी बांध कर विरहिणी-व्रत स्वीकार करती। कोशा-उपकोशा कोशा और उपकोशा पाटलिपुत्र की दो प्रसिद्ध वेश्याएँ थीं; दोनों बहनें थीं । कोशा स्थूलभद्र से और उपकोशा वररुचि से प्रेम करती थो । कोशा ने स्थूलभद्र के साथ बारह वर्ष व्यतीत किये, इसलिए स्थूलभद्र को छोड़कर वह अन्य किसी पुरुष को नहीं चाहती थी। इसी समय स्थूलभद्र घोर तप करने चले गये । लेकिन एक बार अभिग्रह ग्रहण करके वे फिर कोशा के घर लौटे। कोशा ने समझा कि तप से पराजित होकर वे उसके साथ। रहने आये हैं। अपने उद्यान-गृह में रहने के लिए उसने उन्हें स्थान दे दिया। तत्पश्चात् वह रात्रि के समय सर्वालंकार विभूषित होकर स्थूलभद्र के पास आयी, लेकिन स्थूलभद्र वहाँ चार महीने रह कर भी अपने व्रत से विचलित न हुए । उल्टे उन्होंने कोशा को उपदेश दिया और उपदेश से प्रभावित होकर कोशा ने श्राविका के व्रत ग्रहण किये। उसने अब निश्चय कर लिया कि राजा के आदेश से हो वह किसी पुरुष के साथ सहवास करेगी, अन्यथा ब्रह्मचारिणी रहेगी। उज्जैनी की देवदत्ता देवदत्ता उज्जैनी की दूसरी प्रधान गणिका थी जिसे अपने रूपलावण्य का बहुत गर्व था और जो साधारण पुरुषों से रंजित नहीं होतो थी। इधर पाटलिपुत्र-वासी समस्त कलाओं में कुशल मूलदेव नाम का राजकुमार घूमता-घामता उज्जैनो पहुँचा । जब उसे पता लगा १. आचारांगचूर्णी, पृ० ७१ । २. मृच्छकटिक की वसंतसेना, कुट्टिनीमत की हारलता, कथासरित्सागर की कमुदिका आदि के उदाहरण उपस्थित किये जा सकते हैं । ३. उत्तराध्ययनटीका, २, पृ० ३० ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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