________________
२७८
जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ च० खण्ड
कि देवदत्ता बड़ी गर्वीली है तो मूलदेव ने उसके घर के समीप पहुँच अपना मधुर संगीत आलापना प्रारम्भ कर दिया । संगीत सुनकर देवदत्ता क्षणभर के लिए पागल बन गयी । उसने तुरन्त ही माधवी नाम की अपनी चतुर दासी को भेजकर मूलदेव को बुलवाया। लेकिन मूलदेव ने कहा- “विचित्र विटों के वश में रहने वालो, मद्यपान और मांस भक्षण में आसक्त, अति निकृष्ट, तथा वचनों में कोमल और मन से दुष्ट ऐसी गणिका का विशिष्ट पुरुष कभी सेवन नहीं करते | अग्नि की शिखा की भांति वह संताप उत्पन्न करती है, मदिरा की भांति मन को मोहित करती है, छुरी की भांति शरीर को काटती है और सींक की भांति वह निन्दनीय है । " खैर, दासी किसी प्रकार समझा-बुझाकर मूलदेव को अपनी स्वामिनी के पास ले गयो । मूलदेव उसके घर रहने लगा और दोनों में प्रीति बढ़ती गयी ।
अचल नाम का एक व्यापारी देवदत्ता का दूसरा रा प्रेमी था । वह उसे मुँह-मांगे वस्त्र और आभूषण आदि देकर प्रसन्न रखता था । देवदत्ता को माँ अपनी बेटी से कंगाल मूलदेव का परित्याग करने के लिए बहुत कहती- सुनती, लेकिन उसकी बेटी यही उत्तर देती कि वह केवल धन की लोभी नहीं है, गुणों की भी वह कद्र करती है । कुछ समय बाद, अचल ने मूलदेव को अपमानित कर वहाँ से निकाल दिया, और संयोग से वह बेन्यातट नगर का राजा बन गया । इधर देवदत्ता ने अचल के व्यवहार से असन्तुष्ट हो उसे अपने घर से निकाल बाहर किया । उसके बाद, उसने राजा के पास पहुँचकर निवेदन किया कि मूलदेव के सिवाय अन्य किसी पुरुष को उसके घर न आने दिया जाये ।'
अन्य गणिकाएँ
कृष्णवासुदेव ने जब कांपिल्यपुर के लिए प्रस्थान किया तो उनके साथ अनंग सेना आदि गणिकाएँ भी चलीं; इससे भी यही पता लगता है कि उस समय आजकल की भांति उन्हें निकृष्ट नहीं समझा जाता राजगृह के राजा जरासंध की दो सर्वप्रधान गणिकायें थीं; एक
था
R
१. वही ३, पृ० ५९-६५ ।
1
२. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० २०८ । बौद्ध ग्रन्थों की बिन्दुमती गणिका के सत्य के प्रभाव से गंगा का प्रवाह ही उलट गया था । सम्राट् अशोक ने इसका कारण पूछा तो उसने उत्तर दिया कि महाराज, जो मुझे धन देता है, चाहे वह