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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ च० खण्ड
उल्लेख है जिसने अपनी चित्रसभा में सब मनुष्यों के जाति-कर्म, शिल्प तथा कुपितों को प्रसन्न करने के सुन्दर चित्र बनवा रक्खे थे । जब कोई उसका प्रेमी उसके घर आता तो पहले वह उससे चित्रसभा का निरीक्षण करने के लिए कहती | उस समय उसे ज्ञात हो जाता कि कौन व्यक्ति किस जाति का है, कौन-सा शिल्प उसे अच्छा लगता है और कुपित - प्रसादन में वह दारुण स्वभाव का है या स्त्रियों के जल्दी हो वश में जाता है।
कामध्वजा वेश्या
राजा और राजा के मंत्री भी वेश्यागमन करते थे | वाणियगाम में विविध कलाओं में निष्णात कामज्झया ( कामध्वजा ) नाम को एक वेश्या रहती थी । उसी नगर में उज्झित नाम का एक सार्थवाह रहता था । जब उसके माता-पिता मर गये तो नगर -रक्षकों ने उसे घर से निकाल बाहर किया और उसका घर दूसरों को दे दिया । उज्झित आवारा होकर फिरने लगा । एक दिन वह कामज्झया वेश्या के घर गया और वहीं रहने लगा। एक बार विजयमित्र राजा की रानी को योनिशूल उत्पन्न हुआ । उसने उज्झित को कामज्झया के घर से निकलवा दिया, और स्वयं उसके साथ रहने लगा । उज्झित को यह बात बहुत बुरी लगी । मौका पाकर फिर वह चुपके से कामज्झया के घर पहुँच गया । राजकर्मचारियों को जब इस का पता लगा तो उज्झित की मुश्कं air कर वे उसे वयस्थान को ले गये ।
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वेश्यायें नगर की शोभा
जैन और बौद्ध काल में वेश्याएँ नगर की शोभा मानी जाती थीं । राजा उन्हें आदर की दृष्टि से देखता था और उन्हें अपनी राजधानी का रत्न समझता था । मुख्य-मुख्य नगरों में प्रधान गणिका का बड़ी धूमधाम से अभिषेक किया जाता, तथा उसके न रहने पर दूसरी, और दूसरी के न रहने पर तीसरी को उस पद पर नियुक्त किया जाता ।
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१. पीठिका २६२ ।
२. विपाकसूत्र २, पृ० १३; तथा ४, पृ० ३१ ।
३. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ६४ ।
४. किसी रूपवती संयती को वशीकरण आदि द्वारा वश में करके उसे गणिका के पद पर नियुक्त करने का प्रयत्न भी किया जाता, बृहत्कल्पभाष्य १.२८२५ ।