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________________ च० खण्ड ] . तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति २७१ उस देवकुलिका में आयी । कृतपुण्य उस समय सोया पड़ा था। वह उसे खटिया समेत उठवा कर अपने घर ले आयी। घर आकर उसने अपनी चारों पतोहुओं से कहा कि यह तुम्हारा देवर बहुत दिनों के पश्चात् आया है। कुतपुण्य ने वहाँ रहकर बारह वर्ष व्यतीत किये और इस बीच में प्रत्येक पुत्रवधू से चार-चार सन्तान पैदा की। सती प्रथा जैनसूत्रों में स्त्रियों के सती होने के उदाहरण कम ही मिलते हैं। केवल महानिशीथ में एक जगह उल्लेख है कि किसी राजा की विधवा कन्या, अपने परिवार की अपयश से रक्षा करने के लिए, सती होना चाहती थी, लेकिन उसके पिता के कुल में यह रिवाज नहीं था। इसलिए उसने अपना विचार स्थगित कर दिया। पर्दे की प्रथा प्राचीन काल में आधुनिक अर्थ में पर्दा-प्रथा का चलन नहीं था, यद्यपि स्त्रियों के बाहर आने-जाने के सम्बन्ध में कुछ साधारण प्रतिबंध अवश्य थे। जैनसूत्रों में यवनिका (जवणिया) का उल्लेख मिलता है। रात्रि के समय स्वप्न देखने के पश्चात् त्रिशला अपने स्वप्न सुनाने के लिए राजा सिद्धार्थ के पास गई । उस समय आस्थानशाला के आभ्यंतर भाग में एक यवनिका लगवायी गयी, और वहां पर बिछे हुए भद्रासन पर त्रिशला बैठ गई । यवनिका के दूसरी और स्वप्न के पाठक पण्डित बैठे और स्वप्नों का फल प्रतिपादित किया जाने लगा।३ शकटाल की कन्याओं द्वारा भी यवनिका के भीतर बैठकर, राजा की प्रशंसा में लोक-काव्य पढ़े जाने का उल्लेख मिलता है। यह सब होने पर भी, यही कहना होगा कि स्त्रियां बिना किसी प्रतिबंध के बाहर आ जा सकती थीं। अपने सगे-सम्बन्धियों से वे मिलने-जुलने जाती, नगर के बाहर यक्ष, इन्द्र, स्कंद आदि देवताओं की पूजा-उपासना करतीं, १. आवश्यकचूर्णी, पृ० ४६६-६९। २. पृ० २९, आदि; सती प्रथा के लिए देखिए अल्तेकर, वही, अध्याय चौथा । यह प्रथा ग्रीस और इजिप्ट आदि देशों में प्रचलित थी, कथासरित्सागर, पेन्ज़र, जिल्द ४, परिशिष्ट १, पृ० २५५ आदि । ३. कल्पसूत्र ४.६३-६९; तथा ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० ८ । ४. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० २८ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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