________________
च० खण्ड ]
तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति
है ।' कभी यक्ष बनकर पिता अपनी कन्या का उपभोग करते थे । घरजमाई की प्रथा
२६७
कन्या के माता-पिता अपने जमाई को अपने घर रख लेना भी पसन्द करते थे । बंगाल और उत्तरप्रदेश में आज भी इस प्रथा का चलन है । निम्नलिखित परिस्थितियों में लोग घर जमाई रखना पसंद करते थे— ( १ ) लड़की का पिता धनवान हो और उस धन की देखरेख करने वाला कोई पुत्र न हो, ( २ ) कन्या का परिवार बहुत दरिद्र हो और उसे किसी बलवान आदमी को आवश्यकता हो, (३) दरिद्रता के कारण जमाई कन्या का शुल्क देने में असमर्थ हो ।
चम्पा नगरी के सागर और सागरदत्त की कन्या सुकुमालिया के पाणिग्रहण की चर्चा की जा चुकी है। सागरदत्त ने सागर के साथ अपनी कन्या का विवाह इस शर्त पर करना स्वीकार किया था कि यदि वह उसका घरजमाई बनकर रहने को तैयार हो । कारण कि
T
मालिया उसे अत्यन्त प्रिय थी और क्षण भर के लिए वह उसका वियोग सहन नहीं कर सकता था ।' पारस देश में भी इस प्रथा चलन था । अश्वों के किसी मालिक ने किसी दरिद्र आदमी को अपने घोड़ों की संभाल के लिए नौकर रख लिया था । उसके यहां प्रतिवर्ष प्रसव करनेवाली घोड़ियां थीं। नौकर को उसकी मजदूरी के बदले एक वर्ष में दो घोड़े देने का वादा किया गया । धीरे-धीरे उस नौकर का अश्वस्वामी की कन्या से परिचय हो गया। इस बीच में जब उसके वेतन का समय आया तो उसने अश्वस्वामी को कन्या से पूछकर सर्वोत्तम लक्षणयुक्त दो घोड़े छाँट लिये । यह देखकर अश्वस्वामी सोच-विचार में पड़ गया । आखिर उसने नौकर के साथ अपनी कन्या का विवाह कर उसे घरजमाई रख लिया । "
साटे में विवाह
ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जब कि विवाह में अपनी बहन देकर
१. आवश्यकचूर्णी, पृ० २३२
२. उत्तराध्ययनचूर्णी २, पृ० ८९ ।
३. सेन्सस इण्डिया, १९३९, जिल्द १, भाग १, पृ० २५० आदि ।
४. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० १६९।
५. बृहत्कल्पभाप्य ३.३९५९ आदि । तुलना । कीजिए कुंडककुच्छिसिंधव जातक, ( २५४ ), २ ।