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२६८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड दूसरे की बहन ले ली जाती थो । देवदत्त और धनदत्त दोनों एक ही नगर के रहनेवाले थे । देवदत्त की बहन की शादी धनदत्त से और धनदत्त की बहन की शादी देवदत्त के साथ कर दी गयी। आजकल भी मथुरा के चौबों तथा उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में यह प्रथा मौजूद है । इस प्रथा का कारण यही है कि अमुक जाति में लड़कियों की कमी रहती है और अपनी जाति से बाहर विवाह किया नहीं जा सकता। इस विवाह को अदला-बदला भी कहा गया है।
बहुपत्नीत्व और बहुपतित्व प्रथा कहा जा चुका है कि संतानोत्पत्ति हिंदू विवाह का एक मुख्य उद्देश्य समझा जाता था । वंशपरम्परा पुत्र से ही जारी रह सकती है, इसलिए पुत्रोत्पत्ति आवश्यक मानी जाती थी। मोक्ष-प्राप्ति के लिए भी पुत्र का हाना आवश्यक था । ऐसी हालत में हिंदू स्मृतिकारों ने एक से अधिक विवाह करने की अनुमति दी है। बहुपत्नीत्व प्रथा का यही मुख्य सिद्धांत था । यद्यपि आगे चलकर इस उद्देश्य का ह्रास हो गया तथा अनेक स्त्रियों से शादी करना, धनवानों का फैशन बन गया।
प्राचीन काल में, साधारणतया लोग एक पत्नी से ही विवाह करते थे, और प्रायः धनी और शासक-वर्ग हो एक से अधिक पत्नियां रखते थे । राजा और राजकुमार अपने अन्तःपुर को रानियों की अधिकाधिक संख्या रखने में गौरव का अनुभव करते थे, और यह अन्तःपुर अनेक राजाओं के साथ उनके मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाने के कारण, उनकी राजनीतिक सत्ता को शक्तिशाली बनाने में सहायक होता था। धनवान लोग अनेक पत्नियों को धन-सम्पत्ति, यश और सामाजिक गौरव का कारण समझते थे । इस संबंध में विशेषकर भरत चक्रवर्ती, 'राजा विक्रमयश, राजा श्रेणिक," गृहपति महाशत आदि के नाम उल्लेखनीय है।
१. पिंडनियुक्ति ३२४ आदि; तथा निशीथचूर्णो १४.४४९५ । बौद्ध परम्परा के अनुसार, राजा बिंबसार और प्रसेनजित् को एक दूसरे की बहन ब्याही थी; धम्मपदअट्ठकथा, १, पृ० ३८५ ।
२. देखिए सेन्सस इण्डिया, १९३१, जिल्द १, भाग १, पृ० २५२ । ३. देखिए वैलवल्कर, हिन्दू सोशल इण्स्टिट्यूशन्स, पृ० १९३ । ४. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २३९ । । ५. अन्तःकृद्दशा ७, पृ० ४३ । ६. उपासकदशा ८, पृ० ६१। .