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न्च० खण्ड ]
तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति
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महर्षि नारद इस तरह के झगड़े-झंझटों को प्रायः उत्साहित करते रहते थे । जैनसूत्रों में उन्हें कच्छुल्ल नारद के नाम से कहा गया है। एक बार वे पाण्डवों की राजसभा में हस्तिनापुर आये । द्रौपदी ने उनका यथोचित सत्कार नहीं किया । इस पर नारदजी को बहुत बुरा लगा और उन्होंने द्रौपदी से बदला लेने की ठानी। उस समय अमरकंका में पद्मनाभ नाम का राजा राज्य करता था । एक-से-एक सुन्दर सात सौ रानियां उसके अन्तःपुर में रहती थीं, इसलिए अपने अन्तःपुर का उसे बहुत गर्व था | एक बार नारदजी भ्रमण करते हुए वहाँ आ पहुँचे । पद्मनाभ ने नारदजी से प्रश्न किया, "महाराज, क्या आपने कहीं ऐसा सुन्दर अन्तःपुर देखा है ?” नारदजी ने हंसकर कहा - " तुम तो कूपमंडूक हो । द्रौपदी के छिन्न पादांगुष्ठ के बराबर भी तुम्हारा अन्तःपुर नहीं है ।" इतना कहकर नारदजी अदृश्य हो गये । पद्मनाभ नारदजी की बात सुनकर बड़ी चिन्ता में पड़ गया । उसने किसी देव की आराधना की और अवस्वापिनी विद्या के बल से सोती हुई द्रौपदी को अपने अन्तःपुर में उठवा मंगवाया । उधर जब युधिष्ठिर ने द्रौपदी को न देखा तो उसने पण्डु राजा से कहा । कुन्ती को कृष्णवासुदेव के पास द्वारका भेजा गया । अन्त में कृष्ण और पद्मनाभ का युद्ध हुआ और द्रौपदी पाण्डवों को वापस मिल गयी ।"
रुक्मिणी कुण्डिनीनगर के राजा रुक्मी की भगिनी थी । उस समय कृष्णवासुदेव अपनी रानी सत्यभामा के साथ द्वारकापुरी में राज्य करते थे | एक बार जब नारद ऋषि पधारे तो व्यग्रता के कारण सत्यभामा उनका यथोचित आदर-सत्कार न कर सकी । उसे किसी की सपत्नी होने का शाप देकर वे कुण्डिनीनगर में पहुँचे। वहाँ उन्होंने रुक्मिणी को कृष्ण की महादेवी बनने का वर दिया । कृष्ण ने रुक्मिणी की मंगनी की, लेकिन उसका भाई शिशुपाल के साथ उसका विवाह करना चाहता था । इधर रुक्मिणी की फूफी ने रुक्मिणी का अपहरण करके ले जाने के लिए कृष्ण के पास एक गुप्त पत्र भेजा । रुक्मिणी अपनो फूफी के साथ अपनी दासियों से परिवेष्टित हो देवता की अर्चना के लिए जा रही थी कि उधर से कृष्ण अपने रथ में बैठाकर उसे चलते बने | R
१. वही, १६, पृ० १८४ आदि । २. प्रश्नव्याकरणटीका ४, पृ० ८७ ।