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च० खण्ड] तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति
२६१ कर लेते थे। सुभद्रा कृष्णवासुदेव की भगिनो थी। वह पांडु के पुत्र अर्जुन को चाहने लगी। इसीलिए जैन परम्परा में उसे रक्तसुभद्रा नाम से कहा गया है। एक दिन रक्तसुभद्रा अर्जुन के समीप चली गयो। कृष्ण ने उसे वापिस बुलाने के लिए सेना भेजी, लेकिन कोई प्रयोजन सिद्ध न हुआ। उसके माता-पिता को अनुमति के बिना ही अर्जुन ने उसके साथ विवाह कर लिया। इसी प्रकार गंधर्व देश के पुंडवर्धन नामक नगर के सिंहराज की कथा का उल्लेख आता है। एक बार उत्तरापथ से उसके यहां दो घोड़े भेजे गये । एक पर स्वयं राजा सवार हुआ, दूसरे पर राजपुत्र । राजा का घोड़ा राजा को बहुत दूर ले गया । राजा ने घोड़े से उतर कर उसे एक वृक्ष के नीचे बांध दिया। वहां पर्वत के शिखर पर सात तल का एक प्रासाद था जिसमें एक युवती रहती थी। राजा ने उसके साथ गंधर्व विवाह कर लिया। तरंगलोला में तरंगवती की कथा आती है। वत्स देश के धनदेव सेठ ने अपने पुत्र पद्मदेव के लिए तरंगवती की मंगनी की । लेकिन तरंगवती के पिता ने इनकार कर दिया । इस पर तरंगवतो को बड़ी निराशा हुई । अपनी सखी को लेकर वह पद्मदेव के घर पहुंची। वहां से दोनों नाव में बैठकर यमुना नदी के उस पार चले गये, और वहां दोनों ने गंधर्वविधि से विवाह कर लिया।
विवाहित या अविवाहित कन्याओं को 'अपहरण करने के उल्लेख भी जैनसूत्रों में उपलब्ध हैं। इस बात को लेकर अनेक बार युद्ध भी हो जाया करते थे । सीताहरण की कथा सुप्रसिद्ध है । पद्मावती अरिष्टनगर के हिरण्यनाभ की कन्या थी। उसके स्वयंवर को सुनकर राम, केशव आदि अनेक राजकुमार उपस्थित हुए। उनमें पद्मावती को लेकर युद्ध होने लगा और उसका अपहरण कर लिया गया।' ___ तारा का विवाह किष्किन्धापुर के विद्याधर राजा आदित्यरथ के पुत्र सुग्रीव के साथ हुआ था। कोई दूसरा विद्याधर सुग्रीव का रूप बनाकर राजा के अन्तःपुर में प्रविष्ट हो गया। तारा को दो सुग्रीव देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। दोनों को नगर से निकाल दिया गया।
१. प्रश्नव्याकरणटीका ४, १६, पृ० ८५ । २. उत्तराध्ययनटीका, ९, पृ० १४१, १३, पृ० १९० । ३. तरंगलोला पृ० ४२-५७ । ४. प्रश्नव्याकरणटीका, ४.१६ पृ० ८७-अ। .
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