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२६० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड ने जब यह समाचार सुना तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने अनेक राजाओं को स्वयम्वर में उपस्थित होने के लिए निमंत्रण भिजवाया। पताका आदि से नगर को सज्जित किया गया, और वहाँ रंग-मण्डप बनवाया गया। पहिये के एक धुरे ( अक्ख ) में, आठ चक्रों के ऊपर एक पुतली स्थापित की गयी और घोषणा की गयी कि जो कोई उस पुतली की आंख का छेदन कर दे, वही कन्या का अधिकारी होगा और आधा राज्य उसे दिया जायेगा। राजा इन्द्रदत्त अपने पुत्रा के साथ स्वयंवर-मण्डप में उपस्थित हुआ, लेकिन उसके पुत्रों को धनुविद्या का अभ्यास नहीं था। कोई तो धनुष भी ठीक से नहीं पकड़ सकता था। यह देखकर राजा बड़ा निराश हुआ । अन्त में राजा के मन्त्री ने उसका ध्यान राजा के एक अन्य पुत्र की ओर आकर्षित किया जो मंत्री की कन्या से उत्पन्न हुआ था। अन्त में जब उसे खड़ा किया गया तो सभा-भवन में चारों ओर से शोर मचने लगा। एक ओर से आवाज आयी कि यदि पुतली की आंख न बींध सकोगे तो धड़ से सिर उड़ा दिया जायेगा । लेकिन इन सब बातों के कहने-सुनने का कोई असर उस पर न हुआ और उसने पुलिका का बेधन कर वरमाला प्राप्त की।
मालूम होता है कि प्रायः राजा-महाराजा ही अपनी कन्याओं के लिए स्वयंवर रचाते थे। सम्भवतः मध्यम वर्ग के लोगों में स्वयंवर की प्रथा नहीं थी। हां, कुछ ऐसे उल्लेख अवश्य मिलते हैं जिनसे पता लगता है कि निम्न-वर्ग के लोगों में यह प्रथा थी। उदाहरण के लिए, तोसलि देश में व्याघरणशाला होने का उल्लेख मिलता है । यह शाला गांव के बीचोबीच बनी थी। इसमें एक अग्निकुण्ड स्थापित किया जाता था, जहां स्वयंवर के लिए हमेशा अग्नि जलती रहती थी । इस शाला में एक स्वयंवरा दासचेटी और बहुत से दासचेटक प्रवेश करते थे, और जिस चेटक को कन्या पसन्द कर लेती, उसो के साथ उसका विवाह हो जाता था।
गंधर्व विवाह इस विवाह में वर और कन्या अपने माता-पिता की अनुमति के बिना ही, बिना किसी धार्मिक विधि-विधान के, एक-दूसरे को पसन्द
१. उत्तराध्ययनटीका, ३, पृ० ६५-अ आदि। २. बृहत्कल्पभाष्य २.३४४६ ।।