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च० खण्ड] तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति २५९ अपने हाथी पर सवार हो, अर्घ्य आदि ले उनके स्वागत के लिए चला। विपुल अशन, पान, सुरा-मद्य, मांस, सीधु, प्रसन्ना तथा भांति-भांति के सुगंधित पुष्प, वस्त्र, गंध, माल्य और अलंकारों से उनका सत्कार किया गया । इसके पश्चात् नगर-भर में पटह द्वारा द्रौपदी के स्वयंवर की घोषणा की गयो। स्वयंवर-मण्डप भांति-भांति के पुष्पों, पुष्पगुच्छां और सुगंधित मालाओं से महक रहा था; अगर, कुन्दरुक्क और तुरुष्क की गंध सब जगह फैल रही थी तथा अतिथियों के बैठने के लिए सुन्दर गैलरियां (मंचातिमंचकलित ) बनायी गयी थों । शीघ्र ही आगन्तुक राजा-महाराजा अपने-अपने नामांकित आसनों पर आकर बैठ गये और द्रौपदी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे। उधर स्नान आदि करने के पश्चात् द्रौपदी ने जिनगृह में प्रवेश किया और जिन भगवान की पूजा-उपासना करने के बाद वह अन्तःपुर में गयो। अन्तःपुरिकाओं ने उसे सर्वालंकारों से विभूषित किया। फिर वह अपनी चेटिकाओं के साथ रथ पर सवार हुई, तथा क्रीडापनिका और लेखिका दासियों को लेकर स्वयंवर-मण्डप में पहुँची। वहाँ पहुँचकर कृष्णवासुदेव आदि राजाओं को उसने प्रणाम किया। द्रौपदी स्वयंवर माला लेकर आगे बढ़ी। क्रीड़ापनिका दासी भी उसके साथ-साथ चल रही थी। उसके बायें हाथ में एक सुन्दर दर्पण था, और उसमें जिस राजा का प्रतिबिम्ब पड़ता था, उसके वंश, बल, सामथ्ये, गोत्र, पराक्रम, लावण्य, शास्त्राभ्यास, माहात्म्य, रूप, यौवन तथा कुल और शील का वह परिचय देती चलती थी। चलते-चलते जब द्रौपदी पांच पाण्डवों के पास आयो तो वहां रुकी और उनके गले में उसने वरमाला डाल दी। यह देखकर कृष्णवासुदेव आदि राजाओं ने प्रसन्नता व्यक्त की। इसके बाद द्रौपदी पाँच पाण्डवों के साथ अपने घर आ गयी। वहां उन सबको एक पट्ट पर बैठाकर श्वेत और पीत कलशों द्वारा उनका अभिषेक किया गया, अग्निहोम हुआ, प्रीतिदान दिया गया और इस प्रकार पाणिग्रहण की विधि सम्पन्न हुई।' ___ मथुरा के राजा जितशत्रु ने अपनी कन्या निव्वुइ (निर्वृति ) को अपनी मन-पसन्द शादी करने के लिए कहा । अपने पिता का आदेश पाकर निव्वुइ स्वयंवर की सामग्री के साथ इन्द्रपुर नगर में आयी। वहां राजा इन्द्रदत्त अपने बाईस पुत्रों के साथ रहता था। राजा इन्द्रदत्त
१. वही, १६, पृ० १७६-८२।