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२५८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड
और मागधगण जय-विजय से बधाई देने लगे।' यद्यपि ऐसे भी उदाहरण हैं जब कि कन्या को वर के घर जाना पड़ता। उत्सव के लिये शुभ मुहूर्त और शुभ तिथि देखी जाती, तथा वर और बारात को बड़े आदर-सत्कार के साथ भोजन-पान कराया जाता । चम्पा के सागर के विषय में कहा गया है कि स्नान, बलिकम, कौतुक और प्रायश्चित्त करने के पश्चात् उसने अपने शरीर को अलंकारों से विभूषित किया, तथा अपने मित्र और सगे-सम्बन्धियों के साथ सुकुमालिया से विवाह करने के लिए वह सागरदत्त के घर पहुंचा। सागर और सुकुमालिया दोनों को एक पट्ट पर बैठाया गया, श्वेत और पीत कलशों द्वारा उन्हें स्नान कराया गया, अग्नि की आहुति दी गयी, तथा सधवा स्त्रियों द्वारा गाये हुए मंगल-गीतों और चुम्बनों के साथ विवाहोत्सव सम्पन्न हुआ। ..
___ स्वयंवर विवाह ऐसे अनेक उदाहरण जैन सूत्रों में उपलब्ध होते हैं जब कि यौवन अवस्था प्राप्त कर लेने पर कन्यायें, सभा में उपस्थित विवाहार्थियों में से किसी एक को अपना पति चुन लेती थीं। द्रौपदो कांपिल्यपुर के राजा द्रुपद को पुत्री थी। एक दिन, अन्तःपुरिकाओं ने विभूषित कर उसे राजा के पाद-वंदनार्थ भेजी। राजा ने बड़े प्रेम से उसे गोद में बैठाया, और उसके रूप-लावण्य से विस्मित हो उसका स्वयंवर रचाने का विचार किया। इसके पश्चात् द्रुपद राजा ने अपने दूतों को बुलवाया, तथा द्वारका, हस्तिनापुर, चम्पा, मथुरा, राजगृह, वैराट आदि नगरों में जाकर कृष्णवासुदेव, समुद्रविजय, बलदेव, उग्रसेन, पाण्डु
और उनके पांच पुत्र, दुर्योधन, गांगेय, विदुर, अश्वत्थामा, अंग के राजा कर्ण, शिशुपाल, दमदन्त, जरासंध के पुत्र सहदेव, रुक्मि और कोचक आदि राजाओं-महाराजाओं को स्वयंवर में पधारने का निमंत्रण देने का आदेश दिया। तत्पश्चात् राजा ने गंगा नदी के पास सैकड़ों स्तम्भ गाड़कर, क्रीड़ा करती हुई पुतलियों सहित स्वयंवर-मण्डप सजाने को कहा । अतिथियों के ठहरने के लिए सुन्दर आवासों का प्रबन्ध किया गया। उसके बाद कृष्णवासुदेव आदि का आगमन सुनकर द्रुपद राजा
१. वही, पृ० २७८-अ। २. तथा देखिये निशीथचूर्णी ३.१६८६ । ३. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० १६९ ।