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च० खण्ड ] तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति : २५७ ( नाडइल्ल ), आठ साथ जाने वाली ( कोडुंबिणी ), आठ रसोई करने वालो ( महाणसिणी ), आठ भण्डार देखने वाली ( भण्डारी ), आठ बच्चों को ले जाने वाली ( अज्झधारिणी ), आठ पुष्पधारिणी, आठ पाणीय ( जल ) धरी, आठ बलिकारी, आठ शय्याकारी, आठ अभ्यन्तरिका, आठ बहिरिया ( बाह्यधारी), आठ प्रतिहारी, आठ मालाकारी और आठ समाचार ले जाने वाली ( पेसणकारी) आदि ।'
दहेज की प्रथा उन दिनों दहेज की प्रथा थी, तथा स्त्रियाँ माल और मिल्कियत के रूप में बहुत-सा दहेज शादी में अपने साथ लाती थीं। राजगृह के गृहपति महाशतक के रेवती आदि १३ पत्नियाँ थीं । इनमें रेवती अपने पिता के घर से आठ कोटि हिरण्य और आठ ब्रज लेकर आयी, शेष स्त्रियाँ एक-एक कोटि हिरण्य और एक-एक ब्रज लेकर आयी थीं। इसी तरह वाराणसी के राजा ने अपने जमाई को १,००० गाँव, १०० हाथी, बहुत-सा माल-खजाना ( भण्डार ), एक लाख सिपाही और १० हजार घोड़े दहेज में दिये थे।
विवाह-समारम्भ माता-पिता द्वारा आयोजित विवाह में साधारणतया वर कन्या के घर जाता। अरिष्टनेमि ने सब प्रकार की औषधियों से स्नान कर, कृतकौतुक मंगलयुक्त हो, दिव्य वस्त्र धारण कर, आभूषणों से विभूषित हो, और गंधहस्ति पर सवार होकर विवाह के लिए प्रस्थान किया। तत्पश्चात् विवाहोत्सव ( बारेजमहसव ) के अवसर पर राजीमती को सर्वालंकार से विभूषित किया गया, और अरिष्टनेमि भी दिव्य रमणियों के साथ हाथी पर सवार हुए। मंगल वाद्य बजने लगे, ध्वजायें फहरायी गयीं, शंखों की ध्वनि सुनाई दी, मंगल-गीत गाये जाने लगे
१. ज्ञातृधर्मकथा १, सूत्र २१, पृ० ४२-अ आदि तथा टीका; व्याख्याप्रज्ञप्ति ३, पृ० २४४ आदि, बेचरदास का संस्करण; ११.११, पृ० ५४५-४६ अ, अभयदेव की टीका; अन्तःकृद्दशा, पृ० ३३-३५, बार्नेट का संस्करण ।
२. उपासकदशा ४, पृ० ६१; तथा आल्तेकर, वही, पृ० ८२-४ ।
३. उत्तराध्ययनटीका, ४ पृ० ८८; तथा रामायण १.७४.४ आदि; मेहता, प्री-बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० २८१ ।।
४. उत्तराध्ययनसूत्र २२.९-१० । १७ जै० भा०