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________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज प्रीतिदान मेघकुमार का आठ राजकन्याओं के साथ विवाह किये जाने का उल्लेख ऊपर आ चुका है। इस अवसर पर मेवकुमार के माता-पिता ने अपने पुत्र को विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मुक्ता, शंख, विद्रम, और पद्मराग आदि प्रीतिदान में दिये जिन्हें मेघकुमार ने अपनी आठों पत्नियों में बांट दिये । प्रीतिदान की विस्तृत सूत्री यहां दी जाती है : : -आठ कोटि हिरण्य, आठ कोटिं सुवर्ण, आठ मुकुट, आठ कुंडल, आठ हार, आठ अर्धहार, आठ एकावलि, आठ मुक्तावलि, आठ कनकावलि, आठ रत्नावलि, आठ कड़ों ( कडय ) की जोड़ी, आठ बाजूबंदों (तुडिय) की जोड़ी, आठ कार्पासिक वस्त्रों की जोड़ी, आठ टसर ( वडग ) के वस्त्रों की जोड़ी, आठ रेशमी वस्त्रों (पट्ट) की जोड़ी, आठ दुकूल वस्त्रों की जोड़ी, आठ श्री ही धृति- कीर्ति-बुद्धि-लक्ष्मी इन छह देव प्रतिमाओं की जोड़ी, आठ गोल लोहे के आसन (नंदा ), मूढे (भद्रा), तला ( ? तालवृक्ष - टीकाकार), और ध्वजाओं की जोड़ी, आठ गायों के ब्रज, बत्तीस-बत्तीस पात्रों वाले ८ नाटक, आठ रत्नमय अश्व, आठ रत्नमय हस्ती, आठ यान, आठ युग्य, आठ शिबिका, आठ स्यंदमानी, आठ गिल्ली, आठ थिल्ली, आठ अनाच्छादित वाहन, आठ रथ, आठ ग्राम, आठ दास, आठ दासी, आठ किंकर, आठ कंचुकी, आठ महत्तर, आठ वर्षधर, आठ दीपक, आठ थाल, आठ पात्री, आठ थासग ( परांत), आठ मल्लग ( पात्रविशेष ), आठ चमचे (कवि ), आठ अवएज ( पात्रविशेष ), आठ अवपक्व (तवी), आठ पावीढ (आसन), आठ भिसिका, आठ करोडिआ ( लोटा ), आठ पल्यंक ( पलंग ), आठ पडिसिज्जा ( छोटी शय्या ), आठ हंस-क्रौंच-गरुड़-अवनत - प्रणत- दीर्घ-भद्र-पक्ष-मगर-पद्म- दिसासोत्थिय आसन, आठ तेल-कुष्ठ-पत्र - चोय - तगर - एला हरताल - हिंगुल-मनशिला-सरसों के समुद्रक ( डिब्बे ), आठ कुब्जा - किराती - वामना वडभीबर्बरी - बकुशी-योनिका पह्विया-ईसणिया-धोरुकिनी-लासिया-लकुसिकाद्राविडी - सिंहली- आरबी-पुलिंदो - पक्कणी - मुरुंडी - शबरी - पारसी आठ छत्र-चामर-तालवृन्त - स्थगिका ( पानदान) धारण करने वाली, आठ क्षीर-मंडन-मज्जन- क्रीडापन अंक नामक दाइयां, आठ अंगमर्दिकाउन्मर्दिका - विमंडिका, आठ वर्ण और चूर्ण पीसने वाली, आठ क्रीड़ाकरी, आठ दवगारी ( हंसाने वाली ), आठ आस्थान - मंडप खड़ी रहने वाली ( उवत्थाणिया अथवा उच्छाविया), आठ नाटक रचाने वाली दासियां, २५६ [ च० खण्ड
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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