________________
२५२
जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ चं० खण्ड
अवश्य ही रानी ने किसी पुरुष को आने का संकेत दे रखा है। बस, क्रोध में आकर उसने अभयकुमार को अंतःपुर में आग लगा देने का आदेश दिया। उसके बाद अपनो शंका को निवृत्ति के लिए श्रेणिक ने भगवान् महावीर के पास पहुँच कर प्रश्न किया- "महाराज, चेल्लणा के एक पति है या अनेक ?" महावीर ने उत्तर दिया – “एक ।" यह सुनकर श्रेणिक तुरन्त ही वापिस लौटा । आते ही उसने अभयकुमार से पूछा - " क्या तुमने अंतःपुर में आग लगवा दी ?" अभयकुमार ने कहा - "हां महाराज । " श्रेणिक ने कहा - " तुम भी उसमें क्यों न जल मरे ? " अभय ने उत्तर दिया- "महाराज, मैं तो यह सब कांड देखकर प्रव्रज्या लेने जा रहा हूँ ।""
चम्पा के जिनदत्त श्रावक की कन्या सती सुभद्रा का विवाह किसी बौद्ध उपासक से हुआ था। उस पर दोषारोपण किया गया कि श्वेतपट भिक्षुओं के साथ उसका अवैध सम्बन्ध है । यह बात उसके पति से कही गयी, लेकिन उसे विश्वास न हुआ । एकबार, किसी क्षपक ( जैन साधु ) की आंख में चावल का कण गिर पड़ा। सुभद्रा ने उसकी पीड़ा शान्त करने के लिए उस कण को अपनी जीभ से निकाल दिया । ऐसा करते समय, सुभद्रा और क्षपक का मस्तक एक-दूसरे से स्पर्श कर गया, और सुभद्रा के मस्तक पर लगा हुआ लाल तिलक ( चीणपिट्ठ) क्षपक के मस्तक पर भी लग गया । यह चिह्न सुभद्रा पति को दिखाया गया ओर उसने लोगों की बातों पर विश्वास कर लिया । अन्त सुभद्रा के सतीत्व की परीक्षा की गयी, और कहते हैं कि उसके शील के प्रभाव से चम्पा नगरी के चारों द्वार अपने-आप खुल गये, और छलनी में से पानी गिरना रुक गया ।
देखा जाय तो जैन और बौद्धधर्म दोनों के हो अनुसार स्त्रीत्व निर्वाणसिद्धि में बाधक नहीं था । जैनसूत्रों में ब्राह्मी, सुंदरी, चंदना, मृगावती आदि ऐसी कितनी ही महिलाओं के उदाहरण मिलते हैं। जिन्होंने संसार का त्याग कर सिद्धि प्राप्त की और जनता को हित का उपदेश दिया। आर्यचन्दना, महावीर की प्रथम शिष्या थी । श्रमणियों में उनका बहुत ऊँचा स्थान था; अनेक साध्वियों ने उनके नेतृत्व में
१. बृहत्कल्पभाष्यपीठिका १७२, पृ० ५८ ।
२. दशवैकालिकचूर्णी १, पृ० ४९ आदि ।
३. देखिए अन्तःकृद्दशा ५, ७, ८; ज्ञातृधर्मकथा २ श्रुतस्कन्ध, १-१०, पृ० २२०-३० ।