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च० खण्ड] तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति में कथन है कि जल, अग्नि, चोर, दुष्काल का संकट उपस्थित होने पर सर्वप्रथम स्त्री की रक्षा करनी चाहिए। इसी प्रकार डूबते समय भिक्षुभिक्षुणी में से पहले भिक्षुणी को, और क्षुल्लक-क्षुल्लिका में से पहले क्षुल्लिका को बचाना चाहिए। भोजराज उग्रसेन की कन्या राजीमती का नाम जैन आगमों में बड़े आदरपूर्वक लिया जाता है। विवाह के अवसर पर बाड़ों में बंधे हुए पशुओं का चीत्कार सुन, जब अरिष्टनेमि को पैराग्य हो आया तो राजीमती ने भी उनके चरण-चिह्नों का अनुगमन कर श्रमण-दीक्षा ग्रहण को। एकबार की बात है, अरिष्टनेमि, उनका भाई रथनेमि और राजीमती तीनों गिरनार पर्वत पर तप कर रहे थे । इस समय वर्षा के कारण राजीमती के वस्त्र गीले हो गये। उसने अपने वस्त्रों को निचोड़कर सुखा दिया और वह पास की एक गुफा में खड़ी हो गयो । संयोगवश, इस समय रथनेमि भी उसी गुफा में ध्यान में अवस्थित थे। राजीमती को निर्वस्त्र अवस्था में देख उनका मन चलायमान हो गया। उन्होंने राजीमती को भोग भोगने के लिए निमन्त्रित किया । राजीमती ने इसका विरोध किया। उसने मधु और घृत युक्त पेय का पानकर ऊपर से मदनफल खा लिया, जिससे उसे वमन हो गया । रथनेमि को शिक्षा देने के लिए वमन किये हुए पेय को उसने रथनेमि को प्रदान कर व्रतपालन में दृढ़ता प्रदर्शित की।
इस प्रकार के उदाहरण भी मिलते हैं जब पुरुष अपनी स्त्रियों के सतीत्व के विषय में शंकास्पद रहते थे। एक बार, राजा श्रेणिक भगवान् महावीर की वन्दना करके सायंकाल के समय घर लौट रहे थे । माघ का महीना था । मार्ग में चेल्लणा ने एक साधु को प्रतिमा में स्थित देखा । घर आकर वह सो गयो । रात को सोते-सोते उसका हाथ नीचे लटक गया और वह ठंड से सुन्न हो गया। इससे चेल्लणा के सारे शरीर में शीत व्याप्त हो गयी । यह देखकर रानी के मुंह से अचानक ही निकल पड़ा-“उस बेचारे का क्या हाल होगा ?" राजा ने समझा,
अनुसार ( कल्पसूत्रटीका २, पृ० ३२ अ-४२ अ ), स्त्रियों द्वारा निर्वाण प्राप्त करने को दस आश्चर्यों में गिना गया है। दिगम्बरों के अनुसार मल्लि को मल्लिकुमार माना गया है और इस परम्परा में स्त्रीमुक्ति का निषेध है ।
१. बृहत्कल्पभाष्य ४.४३३४-४६ ।। २. वही ४.४३४९ ।
३. दशवैकालिकसूत्र २.७-११; दशवैकालिकचूर्णी २, पृ० ८७; उत्तराध्ययनसूत्र २२॥