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२५० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड सदाचरण का जीवन व्यतीत करती हैं ? पुरुष, जब तक उनकी पत्नियां जीवित रहती है, तब तक उनके साथ निस्सन्देह प्रेम की वार्तालाप करते रहते हैं, लेकिन उनके मरते ही वे दूसरे विवाह का सोच-विचार करने लगते हैं। इसके विपरीत, स्त्रियां अपने पतियों के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करती हैं, तथा उनकी मृत्यु के बाद, दाम्पत्य प्रेम से प्रेरित होकर, उनका अनुगमन करती हुई चिता पर भस्म हो जाती हैं। तब फिर प्रेम में कौन अधिक निष्कपट है ? स्त्रो या पुरुष ? पुरुष के लिए यह कहना कि स्त्रियां चंचल होती हैं, दुर्बल होती है और अविश्वसनीय होती हैं, धृष्टता और कृतघ्नता को चरमसीमा है। इससे उन कुशल चोरों की याद आती है जो पहले तो अपना लूटा हुआ धन अन्यत्र भिजवा देते हैं, और फिर निरपराधी पुरुषों को चुनौती देते हुए उनसे उस धन की मांग करते हैं।"
दूसरा पक्ष स्त्रियों का दूसरा पक्ष भी है जिसकी हम उपेक्षा नहीं कर सकते। हमें ऐसो सती-साध्वी स्त्रियों के अनेक उदाहरण मिलते हैं जो पातिव्रत धारण करती हुई प्रेम और आनन्दपूर्वक जीवन-यापन करती है । तीथंकर आदि शलाकापुरुषों को जन्मदे नेवाली स्त्रियां ही हैं। ऐसो अनेक स्त्रियों के उल्लेख मिलते हैं जो गतपतिका, मृतपतिका, बालविधवा, परित्यक्ता, मातृरक्षिता, पितरक्षिता, भ्रातृरक्षिता, कुलगृहरक्षिता और श्वसुरकुलरक्षिता हैं, नख और केश जिनके बढ़ गये हैं, स्नान न करने के कारण स्वेद आदि से परितप्त हैं, दूध-घो-दही-मक्खन-तेल-गुड़-नमक-मद्य-मांस-मधु का जिन्होंने त्याग कर दिया है, तथा जिनकी इच्छा अत्यन्त अल्प है, फिर भी वे किसी उपपति की ओर मुंह उठाकर नहीं देखतीं।
स्त्रियों को चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में गिना गया है। मल्लिकुमारी ने स्त्री होकर भी तीर्थंकर को पदवी प्राप्त की। स्त्रियों के संबंध
१. बृहत्संहिता ७६.६.१२, १४, १६, १६; तथा ए० एस० आल्तेकर, द पोजीशन ऑव वीमैन इन हिन्दू सिविलिज़ेशन, पृ० ३८७ ।
२. औपपातिकसूत्र ३८, पृ० १६७-६८ । ____३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ३.६७; उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २४७-अ । देखिए दीघनिकाय १, अम्बहसुत्त पृ० ७७ । यहाँ चक्क, हत्थि, अस्स, मणि, इत्थि, गहपति और परिणायक रत्नों का उल्लेख है।
४. ज्ञातृधर्मकथा ८ । ध्यान रखने की बात है कि श्वेताम्बर परम्परा के