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________________ ર૮ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ च० खण्ड कितने ही संग्राम हुए हैं। इस सम्बन्ध में सीता, द्रौपदी, रुक्मिणी, पद्मावती, तारा, कंचना', रक्तसुभद्रा, अहिन्निका, सुवन्नंगुलिया, किन्नरी, सुरूपा, और विद्युन्मति" के उदाहरण दिये गये हैं । अन्य भी अनेक स्त्रियों के उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने अन्य पुरुष के प्रति आसक्त होकर अपने पति से विश्वासघात किया । वाराणसी के प्रधान श्रेष्ठी की विवाहिता कन्या मदनमंजरी अगडदत्तकुमार की ओर कटाक्षयुक्त हाव-भाव प्रदर्शित करती, तथा उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए उस पर पुष्प, फल, पत्र आदि फेंकती । यद्यपि अगडदत्त का विवाह राजकुमारी कमलसेना से हो गया था, लेकिन फिर भी वह मदनमंजरी के प्रेम से आकृष्ट हो उसे अपने साथ ले गया। एकबार की बात है, शंखपुर पहुँचने पर वे दोनों किसी देवकुल में ठहरे हुए थे कि मदनमंजरी किसी दूसरे पुरुष के प्रति आसक्त हो गयी और उसने अगडदत्त को मारने का षड्यंत्र रचा। यह देखकर अगडदत्त को राग्य हो आया और उसने श्रमण-दीक्षा स्वीकार की । " दशकालिक चूर्णी में किसी सेठानी की कथा आती है । वह अपने पति के साथ रहते हुए भी किसी अन्य पुरुष से प्रेम करने लगी थी। स्त्री के श्वसुर ने अपने पुत्र से यह बात कही, लेकिन उसे विश्वास न हुआ । उसकी परीक्षा के लिए उसे यक्षमंदिर में भेजा गया । स्त्री ने मंदिर में स्थित पिशाच को संबोधित करते हुए कहा- हे पिशाच ( उसका प्रेमी पिशाच रूप में वहाँ रहने लगा था ), जिस पुरुष के साथ मेरा विवाह हुआ है, उसे छोड़कर यदि मैंने और किसी से प्रेम किया हो तो तुम ही जानते हो | यक्षमंदिर का नियम था कि यदि कोई अपराधी होता तो वह वहीं रह जाता और निर्दोषी बाहर निकल जाता । उक्त सम्बोधन सुनकर पिशाच विचार में पड़ गया कि इसने तो मुझे ही ठग लिया । इस बीच में उसकी प्रेमिका यक्ष मंदिर से बाहर निकल आयी, और लोगों ने उसके श्वसुर को बहुत बुरा - भला कहा । " १. कुछ लोग कांचना को ही चेल्लणा अथवा चेलना कहते हैं । २. २, ३, ४, ५ इन चारों के सम्बन्ध में विशेष जानकारी नहीं मिलती । ६. प्रश्नव्याकरण १६, पृ० ८५-अ - ८९ - अ । ७. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ८३ - अ आदि । ८. पृ० ८९-९१ । शुकसप्तति में भी यह कहानी मिलती है, १५, पृ०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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