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च० खण्ड ]
तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति
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अंगारा करिति) अंगना, अनेक युद्ध, कलह, संग्राम, शीत-उष्ण, दुःखक्लेश आदि उत्पन्न होने पर पुरुषों का लालन करने के कारण ( नाणाविहेसु जुद्धभंडण संगामाडवीसु महारणगिण्हणसीउन्हदुक्खकिलेस माइ
सुपुरिसे लालंति ) ललना, योग-नियोग आदि द्वारा पुरुषों को वश में करने के कारण (पुरिसे जोगनियोगेहिं वसे ठाविंति ) योषित्, ' तथा पुरुषों का अनेक रूपों द्वारा वर्णन करने के कारण (पुरिसे नाणाविहिं भावेहिं वण्णति ) वनिता कहा गया है ।
स्त्रियों के सम्बन्ध में अनेक उक्तियाँ हैं- “गंगा को बालू को, सागर के जल को और हिमालय पहाड़ की विशालता को बुद्धिमान लोग जानते हैं, लेकिन महिलाओं के हृदय को वे नहीं समझते । वे स्वयं रोती हैं, दूसरों को रुलाती हैं, मिथ्या भाषण करती हैं, अपने में विश्वास पैदा कराती हैं, कपटजाल से विष का भक्षण करती हैं, वे मर जाती हैं लेकिन सद्भाव को प्राप्त नहीं होतीं । महिलाएँ जब किसी पर आसक्त होती हैं तो वे गन्ने के रस के समान, अथवा साक्षात् शक्कर के समान प्रतीत होती हैं । लेकिन जब वे विरक्त होती हैं तो नीम से भी अधिक कटु हो जाती हैं। युवतियाँ क्षण भर में अनुरक्त और क्षणभर में विरक्त हो जाती हैं। उनके प्रेम के स्थान भिन्न-भिन्न होते हैं, हल्दी के रंग की भाँति उनका प्रेम अस्थायी होता है । हृदय से वे निष्ठुर होती हैं, तथा शरीर, वाणी और दृष्टि से वे रम्य जान पड़ती हैं । युवतियाँ सुनहरी छुरी के समान हैं । "3
जैनसूत्रों में स्त्रियों को मैथुनमूलक बताया गया है, जिनको लेकर
१. अंगुत्तरनिकाय ३८, पृ० ३०६ में कहा है किं स्त्रियां आठ प्रकार से पुरुष को बांधती हैं — रोना, हँसना, बोलना, एक तरफ हटना, भ्रूभंग करना, गन्ध, रस, और स्पर्श ।
२. तन्दुलवैचारिक, पृ० ५० आदि । तथा देखिये कुणाल जातक (५३६), पृ० ५०९ आदि; असातमंत जातक ( ६१ ), १, पृ० ३७४ । स्त्रियों को वश में करने के लिये आवश्यकचूर्णी, पृ० ४६२ में निम्न श्लोक उद्धृत है— अन्नपानैहरेद्वालां, यौवनस्थां विभूषया । वेश्यास्त्रीमुपचारेण वृद्धां कर्कशसेवया ॥
३. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ९३; तथा भगवती आराधना ९३८ - १००२ । अंगुत्तरनिकाय २, २, पृ० ४९८ में स्त्रियों को अतिक्रोधी, बदला लेनेवाली, घोरविष, द्विजिह्न और मित्रद्रोही कहा है ।