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२४४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड चिपटे हों तो बच्चे के दांत आगे को निकल आते हैं और उसका मुँह सुई जैसा हो जाता है । इसी प्रकार स्नान कराने वाली दाई द्वारा यदि बालक को पानी में उत्प्लावन कराया जाय तो वह जलभीरु हो जाता है, अत्यन्त जल के भार से उसकी आँखें कमजोर हो जाती हैं और लाल रहने लगती हैं । मंडन करनेवाली दाई बालक को नजर से बचाने के लिये तिलक आदि लगाती है तथा उसके हाथों, पैरों और गले में आभूषण पहनाती है। खिलानेवाली दाई का स्वर यदि जोर का हो तो बच्चा भी जोर से बोलने लगता है, और यदि उसका स्वर धोमा हो तो बच्चा अस्पष्ट बोलता है अथवा गँगा हो जाता है। इसी प्रकार यदि गोदी में खिलानेवाली दाई बालक को अपनी स्थूल कटि में ले तो उसके पैर फैल जाते हैं, यदि शुष्क कटि में ले तो उसकी कटि भग्न हो जाती हैं, निर्मास कटि में लेने से उसकी हड्डियां दुखने लगती हैं, और यदि मांसविहीन कठोर हाथों से उसे लिया जाये तो वह भीरु बन जाता है।
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१. निशीथचूर्णी १३.४३८३-९१; पिण्डनियुक्ति ४१८-२६ । देखिये सुश्रुत, शारीरस्थान १०.२५, पृ० २८४; तथा मूगपक्ख जातक (५३८ ), ५ ।