________________
च० खण्ड ] दूसरा अध्याय : कुटुम्ब-परिवार
२४३ जागरण) और तीसरे दिन चन्द्र-सूर्य दर्शन का उत्सव मनाया गया । बाकी के सात दिन नगर में संगीत, नृत्य और वादित्र की ध्वनि के साथ आनन्द-मंगल की धूम मची रही। ग्यारहवें दिन शुचिकर्म सम्पन्न हुआ और आज से सूतक की समाप्ति मानी गयी। बारहवें दिन विपुल अशन, पान आदि तैयार करके मित्र और स्वजन सम्बन्धियों को आमंत्रित किया गया । इन सब अतिथियों का, भोजन
और वस्त्र आदि से सत्कार किया गया, और तत्पश्चात् बालक का नामसंकरण आदि सम्पन्न हुआ। . ___ इसके अतिरिक्त, और भी बहुत से संस्कारों का उल्लेख आता है। बालक जब घुटनो चलने लगता है तो परंगमण संस्कार, जब पैरों चलना सीख जाता है तो चंक्रमण संस्कार, जब वह प्रथम दिन भोजन का आस्वादन करता है तो जेमामण संस्कार, पहले-पहल जब बोलना सीखता है तो प्रजल्पन संस्कार, और जब उसके कान बीघे जाते हैं तो कर्णवेधन संस्कार मनाया जाता है। उसके पश्चात् संवत्सरप्रतिलेखन ( वर्षगांठ), चोलोपण (चूड़ापनयन ), उपनयन और कला ग्रहण आदि संस्कार सम्पन्न किये जाते थे।
बालकों के तिलक लगाया जाता, उनके हाथों, पैरों और गले में आभूषण पहनाये जाते । उनको देखभाल के लिए अनेक धाइयाँ रहती जिनमें अनेक कुशल धाइयाँ विदेशों से बुलायी जाती। पाँच प्रकार को धाइयों का उल्लेख किया जा चुका है। दूध पिलाने वाली दाई यदि स्थविर हो तो उसके स्तनों में से कम दूध आता है और इससे बच्चा वृक्ष के समान पतला रह जाता है। यदि उसके स्तन स्थूल हों तो बार बार उनमें मुह लगने से बच्चे की नाक चिपटी रह जाती है; यदि वह मंदक्षीर हो तो पर्याप्त दूध न मिलने से बच्चा कमजोर रह जाता है; और यदि उसके स्तन हथेली के मध्य भाग की भाँति
१. जन्म के बाद दस दिन का सूतक और मरण के बाद दस दिन का पातक माना गया है, व्यवहारभाष्यपीठिका, १७, पृ० १० ।
२. ज्ञातृधर्मकथा, १, २१ श्रादि; कल्पसूत्र ५, १०२-१०८; औपपातिक ४०, पृ० १८५।
३. व्याख्याप्रज्ञति ११.११, पृ० ५४३ अ। दैनिक कृत्यों के लिए देखिए वर्धमानसूरि का प्राचारदिनकर; इण्डियन एंटीक्वेरी, १६०३, पृ० ४६० आदि।
४. निशीथभाष्य १३.४३८६ ।