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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ च० खण्ड
लज्जित हुई और फिर वह बच्चे का भली-भांति पालन-पोषण करने लगी ।
पुत्रजन्म
प्राचीन भारत में पुत्रजन्म का बड़ा उत्सव मनाया जाता था । नौ महीने साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर धारिणी देवी ने सुकुमार शरीरवाले नयनाभिराम मेघकुमार को जन्म दिया। अंग-प्रतिचारिकाओं ने जब पुत्रजन्म का समाचार श्रेणिक को दिया तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ । अंग-प्रतिचारिकाओं का उसने मधुर वचनों तथा पुष्प, गंध, माल्य और अलंकार से सत्कार किया, और अपने सिर के मुकुट को छोड़कर समस्त अलंकार उनको प्रदान कर दिये । राजा ने उनके मस्तक का प्रक्षालन किया, और उन्हें दासीपने से मुक्त कर दिया । राजा ने कपने कौटुम्बिक पुरुष को बुलाकर जेल के सब कैदियों को छोड़े देने ( चारगसोहण) का आदेश देते हुए, सारे नगर को पुष्पों और मालाओं से सज्जित करने का आदेश दिया । वस्तुओं के दाम घटा दिये गये और १८ श्रेणी-प्रश्रेणी को दस दिन तक ठिइवडिय ( स्थितिपतिता ) उत्सव मनाने का आदेश दिया गया । इस काल में नगर को शुल्क रहित और कररहित करने की घोषणा कर दी गयी, राज- कर्मचारियों को जप्ती के लिए घरों में प्रवेश करने को मनायो कर दी गयी, प्रजा को दण्ड और कुदण्ड से रहित कर दिया गया और कर्ज माफ कर दिया गया । सर्वत्र मृदंगों की ध्वनि सुनायी देने लगी और जगह-जगह गणिकाओं आदि के सुन्दर नृत्य होने लगे । '
पहले दिन जातकर्म मनाया गया जबकि बालक का नाल काटकर उसे जमीन में गाड़ दिया गया। दूसरे दिन जागरिका ( रात्रि
१. निरयावल १, पृ० १४ ।
२. ज्ञातृधर्मकथा १, २० आदि । ऋषभदेव की जन्म-महिमा के लिये देखिये श्रावश्यकचूर्णी, पृ० १३५ आदि; महावीर के जन्म महोत्सव के लिये, वही, पृ० २४३ आदि; पार्श्वनाथ के जन्म महोत्सव के लिये उत्तराध्ययनटीका, २३,०२८८ आदि ।
३. आवश्यकचूर्णी में अभ्यंगन, स्नापन, अग्निहोम, भूतिकर्म, रक्षापोटलीबन्धन और कानों में 'टि टि' की आवाज करने आदि का उल्लेख है, पृ० १३६ -४० | शाकिनी आदि दुष्ट देवताओं की नजर से बचने के लिये रक्षापोटली बांधी जाती थी, जम्बूद्रीपप्रज्ञप्ति ५, पृ० ३६४ ॥