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________________ च० खण्ड ] दूसरा अध्याय : कुटुम्ब - परिवार २३ε की रानो धारिणी ने भी रात्रि के पूर्वभाग के अंत में और पश्चिम भाग के आरम्भ में स्वप्न देखा कि सात हाथ ऊँचा शुभ्र हाथी उसके मुख में प्रवेश कर रहा है । स्वप्न देखकर वह जाग उठी । स्वप्न को उसने भलीभांति ग्रहण किया । वह शयनीय से उठकर पादपीठ से नीचे उतरी तथा अत्वरित गति से राजा श्रेणिक के पास पहुंच, उसे अपना स्वप्न सुना दिया । स्वप्न सुनकर राजा ने कहा कि तुम्हारे कुलकीर्तिकर पुत्र का जन्म होगा । रानी अपने शयनीय पर लौट गई और सुबह होनेतक धार्मिक विषयों की चर्चा करती रहो । ' गर्भकाल यह समय स्त्रियों के लिए बहुत नाजुक होता है । इस समय उन्हें उठने-बैठने और खाने-पीने आदि में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है । रानी धारिणी गर्भ की रक्षा के लिए अत्यन्त यत्नपूर्वक उठती- बैठतो, खड़ी होती और सोती थी । वह अत्यन्त तीखा, कडुवा, कसैला, खट्टा और मीठा भोजन नहीं करती थी, बल्कि देश-काल के अनुसार हित, मित और पथ्य भोजन ही ग्रहण करती थी । वह अत्यंत चिंता, शोक, दैन्य, मोह, भय और त्रास से दूर रहती थी, तथा युक्त आहार, गंध, माल्य और अलंकारों का सेवन करती हुई गर्भ-वहन करती थी । गर्भकाल में दोहद का बहुत महत्त्व था । गर्भस्थिति के दो या तीन महीने बीत जाने पर स्त्रियों विचित्र दोहद होते थे । उदाहरण के लिए, श्रेणिक की रानी धारिणी देवी को गर्भावस्था के तीसरे महीने में अकाल मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ । उसकी इच्छा हुई कि रिमझिमरिमझिम वर्षा हो रही हो, मेघों का गर्जन हो रहा हो, बिजली चमक रही हो, मयूरों का मनोहर शब्द सुनायी दे रहा हो, मेढकों को टरटर्र सुनायी पड़ रही हो, और ऐसे समय हाथी पर सवार हो वैभारगिरि का परिभ्रमण किया जाय । धारिणी का दोहदपूर्ण न होने के १. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० ८ आदि आवश्यकचूर्णां पृ० २३८ आदि । गौतम बुद्ध की माता माया भी अपने शरीर में प्रवेश करते हुए हाथी का स्वप्न देखती है, निदानकथा १, पृ० ६६ आदि । भरहुत स्तूप को शिल्पकला दि में यह चित्रित है । २. ज्ञातृधर्मकथा, १, पृ० १६; तुलना कीजिए अवदानशतक, १, ३, पृ० १५ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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