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________________ २३८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड शीशे, चांदी और सोने के ढेर, लकड़ी, पत्तियाँ, चमड़ा, घास, फूस, राख और धूल की राशि, शरस्तम्भ आदि घासों की विविध जातियां, दूध, दही, घी, मधु, मदिरा, तेल और चर्बी का घड़ा, कमल से आच्छादित जलाशय, रत्नों का प्रासाद और रत्नों का विमान देखने से भी निर्वाण मिलता है।' स्वप्न में सजावट वाले पदार्थ, हाथो और श्वेत वृषभ देखने से कीर्तिलाभ होता है, तथा जो मूत्र और लाल पुरोष विसर्जन के बाद जाग उठता है उसे धन की हानि होती है। ___ महावीर भगवान् ने केवलज्ञान प्राप्त करने के पूर्व निम्नलिखित दस स्वप्न देखे थे:-भयंकर पिशाच को पराजित करना, श्वेत वर्ण का पुरुष-कोकिल, चित्र-विचित्र पुरुष-कोकिल, सुगंधित मालाओं की जोड़ी, गायों का समूह, कमलों का जलाशय, भुजाओं द्वारा समुद्र को पार करना, दैदीप्यमान सूर्य, मानोत्तषर पर्वत को चारों ओर से घेर लेना तथा मेरु पर्वत का आरोहण । स्थविर बंभगुत्त ने स्वप्न देखा कि उसके दूध से भरे हुए भिक्षा-पात्र को किसी सिंहशावक ने खाली कर दिया है। इसका तात्पर्य था कि कोई बाहर का व्यक्ति उनके पास जैन आगम-सिद्धांत का अभ्यास करने से लिए आनेवाला है। जैनसूत्रों में उल्लेख है कि माताएं अरहंत या चक्रवर्ती आदि के गर्भधारण करने के पूर्व कुछ स्वप्न देखती हैं। जब महावीर गर्भ में अवतरित हुए तो उनकी माता ने स्वप्न में चौदह' पदार्थ देखे :गज, वृषभ, सिंह, अभिषेक, माला, चन्द्रमा, सूर्य, ध्वजा, कुंभ, कमलों का सरोवर, सागर, विमानभवन, रत्नराशि और अग्नि । श्रेणिक राजा १. व्याख्याप्रज्ञप्ति १६.६ । २. उत्तराध्ययन ८.१३, शान्तिसूरीय टीका । टीकाकार नेमीचन्द्र ने स्वप्नों की व्याख्या करते हुए प्राकृत को कतिपय गाथाएँ उद्धृत की हैं। इससे पता लगता है कि स्वप्नशास्त्र सम्बन्धी प्राकृत में साहित्य मौजूद था। इसकी कुछ गाथाओं की तुलना जगदेव के स्वप्नचिन्तामणि ( सम्पादित डाक्टर नेगेलियन द्वारा ) से की जा सकती है, शान्टियर, उत्तराध्ययन, नोट्स, पृ० ३१० आदि। ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति १६.६ पृ० ७०६; अावश्यकचूर्णी, पृ० २७४ । ४. आवश्यकचूर्णी, पृ० ३६४ । ५. केशव की माताएँ इनमें से सात, बलदेव की चार और मांडलिकों की माताएं केवल एक स्वप्न देखती है, उत्तराध्ययनटीका, २३, पृ० २८७ श्र। ६. कल्पसूत्र ३.३२.४६; अावश्यकचूर्णी पृ० २३६ श्रादि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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