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________________ ५ पहला अध्याय : जैन संघ का इतिहास अन्तर आदि को देखने से उनकी पौराणिकता प्रायः अधिक सिद्ध होती है।' बाइसवें तीर्थंकर – नेमिनाथ 1 नेमि अथवा अरिष्टनेमि बाइसवें तीर्थंकर हैं जो परम्परा के अनुसार यादवों के अत्यन्त प्रिय और कृष्ण भगवान् के चचेरे भाई थे । अरिष्टनेमि सोरियपुर ( सूर्यपुर, आगरा जिले में बटेश्वर के पास ) में राजा समुद्रविजय के घर महारानी शिवा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे उनका विवाह मथुरा के राजा उग्रसेन की कन्या राजोमती के साथ होना निश्चित हुआ । लेकिन जब वे बारात लेकर ब्याहने पहुँचे तो उन्हें बाड़ों में बँधे हुए पशुओं की चीत्कार सुनाई दी । ज्ञात हुआ कि उन पशुओं को मारकर बारातियों के लिए भोजन तैयार किया जायेगा। यह सुनकर अरिष्टनेमि के कोमल हृदय को बहुत आघात पहुँचा । वे उल्टे पैर लौट गये और घर पहुँचकर उन्होंने श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर ली। दीक्षा धारण करने के पूर्व अरिष्टनेमि और कृष्ण के बीच बाहुयुद्ध होने का उल्लेख जैन ग्रन्थों में मिलता है। कहते हैं कि युद्ध में हार जाने के कारण कृष्ण अपने चचेरे भाई से ईर्ष्या करने लगे थे । अरिष्टनेमि रैवतक ( गिरनार ) पर्वत के सहस्राम्रवन उद्यान में पहुँच कर तप करने लगे । कालान्तर में राजोमती ने उनका अनुगमन किया; वह भी उसी पर्वत पर पहुँचकर तप में लीन हो गयी, और उसने मोक्ष प्राप्त किया । यदुकुल के अनेक राजकुमार और राजकुमारियों तथा कृष्ण की रानियों ने अरिष्टनेमि के पादमूल में बैठकर श्रमण-दीक्षा स्वीकार की । गिरनार पर्वत पर उन्होंने सिद्धि पाई । पार्श्वनाथ – एक ऐतिहासिक व्यक्ति पार्श्वनाथ जैनधर्म के २३ वें तीर्थंकर हैं जो अन्तिम तोर्थंकर १. बौद्ध शास्त्रों में ७ अथवा २४ बुद्धों का उल्लेख है, देखिये दीघनिकाय २, महापदानसुत्त पृ० ४; यहाँ बुद्धों के नाम, कुल, जन्मस्थान, बोधिवृक्ष और उनके दो प्रधान श्रावकों आदि का वर्णन है; बुद्धवंस | आजीविक मत में मक्खलि गोशाल को २४ वाँ तीर्थंकर माना गया है । २. उत्तराध्ययन सूत्र २२ । ३. उत्तराध्ययन टीका २२, पृ० २७८ श्रादि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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