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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज विधियाँ बतायीं । ब्राह्मी को उन्होंने दाहिने हाथ से लिखना, सुन्दरी को बायें हाथ से गणित करना तथा मरत को रूपकर्म (स्थापत्यविद्या) और बाहुबलि को चित्रकर्म सिखाया। नागयज्ञ, इन्द्रमह तथा दण्डनीति का इस समय से प्रचार हुआ। विवाह-संस्था की स्थापना हुई, मृतक का दाहकमें किया जाने लगा तथा स्तूप-निर्माण की परम्परा प्रचलित हो गयो। ___ भारतवर्ष को प्रथम राजधानी इक्ष्वाकुभूमि ( अयोध्या) में ऋषभदेव का जन्म हुआ। अनेक वर्षों तक उन्होंने राज्य किया, फिर भरत का राज्याभिषेक कर श्रमण-धर्म में दीक्षा ग्रहण की। पहले वे एक वर्ष से अधिक समय तक सचेल और बाद में अचेलव्रती रहे। तपस्वी जीवन में उन्होंने अनेक उपसर्ग सहन किये, पुरिमताल ( अयोध्या का उपनगर ) में केवलज्ञान प्राप्त किया और अन्त में अष्टापद ( कैलाश) पर्वत पर निर्वाण पाया। यहाँ बड़ी धूमधाम से उनकी अस्थियों और चैत्यों पर स्तूपों का निर्माण किया गया।' ___ तत्पश्चात् जैन ग्रन्थों में २३ तीर्थंकरों की परम्परागत सूची दी गई है। इनमें से अधिकांश तीर्थंकरों का जन्म इक्ष्वाकु वंश में अयोध्या, हस्तिनापुर, मिथिला या चम्पा में हुआ और उन्होंने प्रायः सम्मेदशिखर (समाधिशिखर; पारसनाथ हिल, हजारीबाग) पर सिद्धि पाई। अभी तक प्रथम बाईस तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में यथेष्ट प्रमाण नहीं मिल सके. उल्टे उनके अति दोघकालीन जीवन, उनके शरीर की ऊँचाई तथा एक दूसरे तीर्थंकर के मध्य के
१. कल्पसूत्र ७, २०६-२२८; जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति २, १८-४०; आवश्यकनियुक्ति १५० आदि; आवश्यकचूर्णी, पृ० १३५-१८२; वसुदेवहिण्डी, पृ० १५७-१६५, १८५; त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित, पृ० १०० आदि । ब्राह्मणों के भागवतपुराण (ईसवी सन् की ८ वीं शताब्दी ) में ऋषभदेव का चरित मिलता है। पण्डित सुखलालजी के अनुसार, ऋषभ समस्त आर्यजाति द्वारा पूज्य थे, तथा ऋषभपञ्चमी को ही ऋषिपञ्चमी कहा जा सकता है, देखिये, चार तीर्थकर, पृ० ४ श्रादि ।
२. सर्वप्रथम २४ तीर्थंकरों का उल्लेख समवायाङ्ग २४; कल्पसूत्र ६, ७; आवश्यकनियुक्ति ३६९ श्रादि में मिलता है।