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________________ ६ . जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज वर्धमान महावीर के लगभग २५० वर्ष पूर्व (ई० पू० ८ वीं शताब्दी) वाराणसी में, इक्ष्वाकुवंशीय राजा अश्वसेन के घर महारानी वामा की कोख से पैदा हुए थे। पार्श्वनाथ ३० वर्ष गृहस्थावस्था में रहे, ७० वर्ष उन्होंने साधु जीवन व्यतीत किया और ८४ दिन घोर तप करने के बाद केवलज्ञान प्राप्त किया। अपने साधु जीवन में पार्श्वनाथ ने अहिच्छत्रा, श्रावस्ती, साकेत, राजगृह, हस्तिनापुर और कौशाम्बो आदि नगरों में परिभ्रमण किया तथा अनार्य जातियों में उपदेश का प्रचार कर सम्मेदशिखर पर सिद्धि प्राप्त की।' पार्श्वनाथ को पुरिसादानीय,२ लोकपूजित, सम्बुद्ध, सर्वज्ञ, धर्मतीर्थकर और जिन कहा गया है। पार्श्वनाथ ने जैनसङ्घ को सङ्गठित करने के लिए उसे श्रमण, श्रमणी और श्रावक, श्राविका इन चार भागों में विभक्त किया, तथा सङ्घ की देखभाल के लिए अपने गणधरों को नियुक्त कर दिया। पुष्पचूला उनके भिक्षुणी-सङ्घ की प्रमुख गणिनी थी। पार्श्वनाथ ने बिना किसी जाति-पाँति या लिङ्ग के भेदभाव के, मनुष्यमात्र के लिए अपने निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश दिया। चारों वर्गों और स्त्रियों १. कल्पसूत्र ६.१४६-१६६ । २. कल्पसूत्र ६.१४६ । पाली में पुरिसाजानीय, अंगुत्तरनिकाय १, ३, पृ० २७०,२, ४, पृ० १२१ । ३. उत्तराध्ययन सूत्र २३.१ । ४. श्रापस्तंब ( १.३ ) सत्र में कहा है कि जिस गाँव में कोई चाण्डाल रहता हो वहाँ वेद पाठ नहीं करना चाहिए तथा यदि जान-बूझकर कभी वह वेदपाठ का श्रवण कर ले तो उसके कानों में पिघलता हुआ गर्म-गर्म टीन अथवा गर्म लाख भर दी जाय, और यदि कभी वह वेदमन्त्रों का उच्चारण करे, तो उसकी जिह्वा काट ली जाय, यदि वह उन्हें याद करने का प्रयत्न करे तो उसके शरीर के टुकड़े कर दिये जायँ, (गौतम १२.४-६ ) । बौद्धों के मातंग जातक (नं० ४६७, पृ० ५८४ ) में, मातंग को देखकर किसी वैश्य कन्या द्वारा सुगन्धित जल से अपनी आँखें धोने का उल्लेख है। - ५. आपस्तम्ब (१.२.७.१०, पृ० ४१) में किसी स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है। यज्ञ-याग में सम्मिलित होना स्त्रियों के लिए निषिद्ध है (२.६. १५:१७, पृ० २४७); तथा देखिये बौधायन ( १.५.११.७ ); शतपथ ( १४.१.१.३१); मनुस्मृति (११. ३७ )। भगवान बुद्ध ने भी अपनी मौसी महाप्रजापति गौतमी के आग्रह पर ही स्त्रियों को भिक्षुणी संघ में प्रवेश करने की अनुज्ञा दी थी (चुलवग्ग १०.१ पृ० ३७३ )।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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