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________________ २३२ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड पहाड़ों में रहते थे, तथा मरो हुई गाय का भक्षण करते थे।' नीच और अस्पृश्य शूद्र आरम्भकाल से ही बड़ी उपेक्षित दशा में रहते आये हैं। महावीर और बुद्ध ने उनकी दशा सुधारने का प्रयत्न किया, लेकिन फिर भी वर्ण और जाति सन्बन्धी प्रतिबन्ध दूर नहीं किये जा सके । उत्तराध्ययन की टीका में चित्त और सम्भृत नाम के दो मातंग दारकों की कथा आती है। दोनों अत्यन्त सुन्दर थे और साथ ही गंधर्व-विद्या में निपुण भी। एक बार, मदन महोत्सव के अवसर पर दोनों भाइयों की टोली गाती-बजाती बनारस में से होकर निकली, जिसने सभी को मुग्ध कर दिया। लेकिन ब्राह्मणों को बहुत ईर्ष्या हुई। परिणाम यह हुआ कि दोनों मातंग पुत्रों को खूब मारा गया, पोटा गया और नगर से निकाल दिया गया । जैन कथा-कहानियों में अस्पृश्य समझे जाने वाले मातंग और चांडालों की और भी बहुत-सी कथाएँ आती हैं। जाति-जुगुप्सितों में पाण, डोंब और मोरत्तिय का उल्लेख है। मातंगों को जाति का कलंक माना जाता था। पाणों को चांडाल भी कहा गया है । ये लोग बिना घर-बार के केवल आकाश की छाया में निवास करते थे और मुर्दे ढोने का काम किया करते थे।" डोंबों के घर होते थे; वे गीत गाकर और सूप आदि बनाकर अपनी आजीविका चलाते थे। उन्हें कलहशील, रोष करनेवाले और चुगलखोर बताया है।६ किणिक वाद्यों के चारों ओर तांत लगते, और वध्य-स्थान को ले जाये जाते हुए पुरुषों के सामने बाजा बजाते । सोवाग (श्वपच ) कुत्तों का मांस पकाकर खाते, और ताँत की बिक्री करते । वरुड़ रस्से बंट कर आजीविका चलाते । हरिकेश १. वही १५.४८५३ की चूर्णी । २. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १८५-अ%; तथा देखिए चित्तसंभूतजातक ( ४५८)। ३. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १८६ । ४. तुलना कीजिए अन्तःकृद्दशा ४, पृ० २२; तथा मनुस्मृति १०.५० श्रादि । ५. देखिए अन्तःकृद्दशा ४, पृ० २२ । ६. निशीथचूर्णी ४.१८१६ की चूणीं ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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