________________
च० खण्ड ]
पहला अध्याय : सामाजिक संगठन
२३१
हस्तिपाल,' सारस्वत, ' वज्जि आदि के उल्लेख मिलते हैं | मल अपनी एकता के लिए प्रसिद्ध थे । ये लोग किसी अनाथ मल्ल की मृत्यु हो जाने पर उसको अन्त्य - किया करते तथा अपने संगठन के दीन-हीन लोगों की सहायता करते । बौद्धसूत्रों में वज्जिगण का उल्लेख आता है । ये लोग किसी बात का निर्णय करने के लिए एकत्रित होकर बैठकें ('सन्निपात) करते और परस्पर हिल - मिलकर कार्य करते । ४ जैनसूत्रों में गोदास, उत्तरबल्लिरसह, उद्देह, चारण (? वारण), कोटिक, माणव आदि अनेक गणों का उल्लेख आता है । ये गण अनेक कुल और शाखाओं में विभक्त थे । कुलों के समूह को गण कहा गया है । " इसके सिवाय, ग्वाले, शिकारो, मच्छीमार, घसियारे, लकड़हारे आदि के नाम लिए जा सकते हैं ।
म्लेच्छ
जैनसूत्रों में विरूव, दसू ( दस्यु ), अणारिय ( अनार्य ), मिलक्खू ( म्लेच्छ) और पचंतिय ( प्रत्यंतिक ) नामक अनार्यों का उल्लेख मिलता है । ये लोग विविध वेष धारण करने और अनेक भाषाएँ बोलने के कारण विरूप, क्रोध के आवेश में दांतों से काटने के कारण दस्यु, आर्यों की भाषा न समझ सकने के कारण तथा हिंसा आदि दुष्कृत्य करने के कारण अनार्य तथा अव्यक्त अथवा अस्फुट वाणी बोलने के कारण म्लेच्छ कहे जाते थे । इसी प्रकार रात्रिभोजन करने के कारण अकालपरिभोगी, और लदूधर्म में रुचि न होने के कारण दुःप्रतिबोधी कहे जाते थे । ये लोग प्रायः सीमा- प्रदेशों पर निवास करते थे, अतएव उन्हें प्रत्यंतिक भी कहा जा था । पुलिंद जंगलों और
1
१. व्यवहारभाष्यटीका ७.४५६ ।
२. बृहत्कल्पभाष्य ६.६३०२ ।
३. सूत्रकृतांगचूर्णी, पृ० २८; तथा मलालसेकर, डिक्शनरी व पालि प्रौपर नेम्स, 'मल्ल' शब्द ।
४. दीघनिकाय
कथा, २, पृ० ५१६ आदि ( महापरिणिव्वाण
सुत्तवण्णना ) ।
५. कल्पसूत्र ८ पृ० २२६ श्र आदि । ६. निशीथसूत्र १६.२६ ।
७. निशीथभाष्य १६.५७२७-२८ चूर्णां ।