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________________ २३० जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [च. खण्ड के घड़ों से भरकर चम्पा में बेचने के लिए जाया करता था।' नन्द राजगृह का एक प्रभावशाली श्रेष्ठी था जिसने बहुत-सा धन व्यय करके पुष्करिणी का निर्माण कराया था।२ भरत चक्रवर्ती का गृहपतिरत्न सर्वलोक में प्रसिद्ध था; शालि आदि विविध धान्यों का वह उत्पादक था और भरत के घर सब प्रकार के धान्यों के हजारों कुम्भ भरे रक्खे रहते थे। श्रेणी संगठन __ आर्थिक जीवन का अध्ययन करते समय श्रमिकों और व्यापारियों के संगठन के सम्बन्ध में विचार किया गया है। उनका परम्परागत संगठन होने के कारण इन लोगों के कुछ कायदे-कानून भी थे जिससे पता लगता है कि सामाजिक संगठन में इन लोगों का अपना अलग स्थान था। इसके अतिरिक्त, बहुत से उत्पादनकर्ता, नट, बाजीगर, गायक, और परिभ्रमण करने वाले लोग थे जो गाँव-गाँव में घूमकर, अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए अपनी आजीविका चलाते थे । धन्नउर (धन्यपुर ) का नट अपनी कला में निष्णात था।' विश्वकर्मा नट राजगृह का निवासी था।' उज्जयिनी के पास नटों का एक गाँव था, जहाँ भरत नाम का नट रहा करता था। उसके पुत्र का नाम रोहक था। रोहक की प्रत्युत्पन्न मति की अनेक कहानियां जैन आगमों की टीकाओं में वर्णित हैं । गारुडिक ( साँप का विष उतारने वाले) तथा भूतवादी आदि भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन किया करते थे। प्राचीनकाल में संघ, गण और गच्छों का उल्लेख आता है । जैन श्रमण अपना संघ बनाकर विचरण किया करते थे । गणों में मल्ल, १. वही, पृ० २६७ । २. ज्ञातृधमकथा १३, पृ० १४१ । ३. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० १६७-६८। ४. उत्तराध्ययनटोका १८, पृ० २५० । ५. पिण्डनियुक्ति ४७४ आदि । ६. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५४४-४६ । तथा देखिये जगदीशचन्द्र जैन, दो हजार बरस पुरानी कहानियाँ । ७. उत्तराध्ययनटीका, १२, पृ० १७४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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