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________________ च० खण्ड] पहला अध्याय : सामाजिक संगठन . २२६ कौन-सा अशुभ, और ब्राह्मण आशीर्वादपूर्वक मुहूर्त का प्रतिपादन करते ।' खत्तिय (क्षत्रिय) जैसे ब्राह्मणों के ग्रन्थों में ब्राह्मणों को प्रभुता का प्रदर्शन किया गया है, वैसे ही जैनों ने भी क्षत्रियों के प्रभुत्व का बखान किया है। क्षत्रिय ७२ कलाओं का अध्ययन करते और युद्ध-विद्या में कुशलता प्राप्त करते थे । अपने भुजबल द्वारा देश पर शासन करने का अधिकार वे प्राप्त करते । ऐसे कितने ही क्षत्रिय राजाओं और राजकुमारों का उल्लेख मिलता है जिन्होंने संसार का त्याग कर सिद्धि प्राप्त की; इनमें उग्र, भोग, राजन्य, ज्ञात, और इक्ष्वाकु आदि मुख्य हैं । - गाहावइ ( गृहपति ) गृहपतियों को प्राचीन भारत के वैश्य ही समझना चाहिए। वे धनसम्पन्न होते, जमीन-जायदाद और पशुओं के मालिक होते तथा व्यापार द्वारा धन का उपार्जन करते । जैनसूत्रों में कितने ही गृहपतियों का उल्लेख है जो जैनधर्म के अनुयायी ( समणोवासग) थे, और जिन्होंने संसार का त्यागकर निवोण प्राप्त किया था। वाणियग्राम के धन-सम्पन्न और जमींदार आनन्द गृहपति के सम्बन्ध में कहा जा चुका है। उसके पास अपरिमित हिरण्य-सुवर्ण, गाय-बैल, हल, घोड़ागाड़ी, वाहन, यानपात्र आदि मौजूद थे और वह विविध भोगों का उपभोग करते हुए समय-यापन किया करता था। पारासर एक दूसरा गृहपति था जो कृषिकर्म में कुशल होने के कारण किसिपारासर नाम से विख्यात था । ६०० हलों का वह स्वामी था । कुइयण्ण (कुविकर्ण) के पास बहुत-सी गायें थीं। गोसंखी कुटुम्बी को आभीरों का स्वामी कहा गया है। उसका पुत्र अपनी गाड़ियों को घी १. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ०६८। २. गृहपतियों को इभ्य, श्रेष्ठी और कोटुम्बिक नाम से भी कहा गया है। इन्हें राजपरिवार का अङ्ग माना जाता था, श्रोपपातिकसूत्र २७; फिक, बही, पृ० २५६ श्रादि । ३. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० ४५। - --- ४. आवश्यकचूर्णी, पृ० ४४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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