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च० खण्ड] पहला अध्याय : सामाजिक संगठन __ अन्य विशेषाधिकार भी ब्राह्मणों को प्राप्त थे। उदाहरण के लिए, उन्हें कर नहीं देना पड़ता था और फांसी की सजा से वे मुक्त थे। निधि आदि का लाभ होने पर भी राजा ब्राह्मणों का आदर-सत्कार करता, जब कि वैश्यों को निधि जब्त कर ली जाती, यह बात पहले कही जा चुकी है।
अध्ययन-अध्यापन ब्राह्मण षट्-अंग ( शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष और कल्प), चार वेद (ऋग्वेद, युजर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद), मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र-इन चौदह विद्याओं में निष्णात होते थे।' वे यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, दान और प्रतिग्रह नामक छह कर्मों में रत रहा करते थे। राजा उन्हें अपने यहाँ रखते और उनकी आजीविका का प्रबन्ध करते थे। चौदह विद्याओं में परांगत कासव नामका ब्राह्मण कौशाम्बो के जितशत्र नाम के राजा की सभा में रहा करता था। उसकी मृत्यु हो जाने पर उसका स्थान एक दूसरे ब्राह्मण को दे दिया गया । अध्यापक अपने विद्यार्थियों (खंडिय) को साथ लेकर परिभ्रमण करते थे। मगध का प्रख्यात पंडित इन्द्रभूति अपने शिष्य-परिवार के साथ मज्झिमा नगरी में आया था।'
यज्ञ-याग ब्राह्मणों में यज्ञ-याग का प्रचलन था । श्रमण-दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् , अपने विहार के समय, महावीर भगवान् ने चम्पा के एक ब्राह्मण की अग्निहोत्रवसही में चातुर्मास व्यतीत किया था। उत्तराध्ययन में यज्ञीय नामक अध्ययन में, जयघोष मुनि और
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१. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ५६-श्र। ब्राह्मणों को शकुनीपारग कहा गया है; शकुनी अर्थात् चौदह विद्यास्थान, बृहत्कल्पभाष्य ३.४५२३ । श्राचारांगचूर्णी, पृ० १८२ में उन्हें संस्कृत के विद्वान् और प्राकृत के महाकाव्यों के जानकार कहा गया है ।
२. निशीथभाष्य १३.४४२३ । ३. उत्तराध्ययनटीका, ८, पृ० १२३-अ। ४. उत्तराध्ययनसूत्र १२.१८-१९ । ५. आवश्यकचूर्णी, पृ० ३३४ । ६. वही पु० ३२० -