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________________ २२६ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड जाति को जी-भरकर निन्दा की, लेकिन फिर भी वे जातिपांति के बंधनों से अपने आपको सर्वथा मुक्त न कर सके। उन्होंने जाति-आर्य और जाति-जुंगित (जुगुप्सित), कर्म-आर्य और कर्म-जुंगित तथा शिल्प-आय और शिल्प-जंगित में भेद बताकर ऊँच-नीच के भेद को स्वीकार किया है। ब्राह्मणों के विशेषाधिकार जैन आगमों की टीकाओं में उल्लेख है कि भरत चक्रवर्ती ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन कराते, तथा काकिणी रत्न से चिह्नित कर उन्होंने उन लोगों को दूसरी जातियों से पृथक किया था। राजा लोग दानमान से सम्मानित कर उनके प्रति उदारता व्यक्त करते थे। पाटलिपुत्र के नन्द राजाओं ने ब्राह्मणों को बहुत-सा धन देकर उनके प्रति आदर व्यक्त किया था। वररुचि नाम के ब्राह्मण को राजा की प्रशंसा में श्लोक सुनाने के बदले पुरस्कार स्वरूप प्रतिदिन १०८ दीनारें मिलती थीं। राजा ही नहीं, अन्य लोग भी ब्राह्मणों को गोदान आदि से सम्मानित करते" और उन्हें आदर की दृष्टि से देखते । जन्म-मरण आदि अनेक अवसरों पर ब्राह्मणों की पूछ होती, और भोजन आदि द्वारा उनका सत्कार किया जाता। चाणक्य जब नंदों के दरबार में पहुँचा तो वह कुंडी, दंड, माला (गणेत्तिय ) और यज्ञोपवीत लिए हुए था। प० १२१ में घी, तेल, नवनीत, दधि, मधु और फाणित द्वारा यज्ञानुष्ठान का विधान है। १. बौद्धों में भी अपने ही वंश में विवाह करके, रक्त को शुद्ध रखने का प्रयत्न है, देखिए, फिक, वही, पृ० ५२ । तुलना कीजिए घुर्ये, कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया, प० ६६ । सम्मोहविनोदिनी, प० ४१० में कर्म और शिल्प को ऊँच और नीच में विभक्त किया गया है। २. श्रावश्यकचूणी, पृ २१३ श्रादि । ३. उत्तराध्ययनटोका, ३, पृ० ५७ । ४. वही, २, पृ० २७-श्र। ५. आवश्यकचूर्णी, पृ० १२३ । ६. उत्तराध्ययनटीका, १३, पृ० १६४-श्र । ७. वही ३, प० ५७ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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