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तृ० खण्ड ]
चौथा अध्याय : उपभोग
पनयन ) संस्कार किया जाता था । संसार त्याग कर श्रमण दीक्षा स्वीकार करते समय भी चार अंगुल केशों को काटा जाता था । ' अलंकारिकसभाओं ( सैलून ) २ का उल्लेख मिलता है, जहाँ अनेक नौकर-चाकर श्रमण, ब्राह्मण, अनाथ, रुग्ण और कंगाल पुरुषों को सेवा-सुश्रूषा में लगे रहते थे । हजामत बनाने के कार्य को नखपरिकर्म ( परिकम्म ) कहा गया है । ४
लोग सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात और आभूषणों का उपयोग करते थे । राजे-महाराजे तथा धनिक पुरुष अपने नौकरों-चाकरों से परिवेष्टित होकर चलते थे । नौकर-चाकर उनके सिर पर कोरंटक के फूलों की माला से सज्जित छत्र धारण किये रहते ।" जब वे बाहर निकलते पालकी में बैठकर निकलते और बाजे बजते चलते, और उनके पीछे-पीछे जुलूस चलता जिसमें सुन्दर रमणियां चमर डुलाती रहतीं, पंखे से हवा करती रहतों, और मंगल घट उनके हाथ में होता धनिक महलों में निवास करते, अनेक स्त्रियों से विवाह करते, बड़े-बड़े दान देते, वेश्याओं को मनमाना शुल्क प्रदान करते और ठाट-बाट से उत्सव मनाते ।
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मध्यम वर्ग के लोग भी आराम का जीवन व्यतीत करते थे । वे लोग दान-धर्म में अपना पैसा खर्च करते तथा धर्म और संघ की भक्ति करते । सबसे दयनीय दशा थी निम्न वर्ग की । ये लोग बड़ी कठिनाई से द्रव्य का उपार्जन कर पाते और इस कारण इनकी आजीविका मुश्किल से ही चलती । कोदों का भात उन्हें नसीब होता । श्रमजीवी साहूकारों द्वारा शोषित किये जाते, तथा कर्जा न चुका सकने के कारण उन्हें जीवन भर उनकी गुलामी करती पड़ती ।
१. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० २६ आदि ।
२. परमत्थदीपनी, पृ० ३३३ में अलंकारशास्त्र का उल्लेख है जिसमें बाल काटने के नियम बताये गये हैं ।
३. ज्ञातृधर्मकथा १३, पृ० १४३ |
४. आवश्यकचूर्णी पृ० ४५८ ।
५. अन्त:कृद्दशा ३, पृ० १६; श्रपपातिकसूत्र २७-३३ । ६. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० ३० आदि ।