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________________ २१६ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ तृ० खण्ड फैलाने का चमड़ा ), सिक्कक ( छौंका) और कापोतिका (बंहगी) का उल्लेख किया गया है।' - घर जैसे जीवन-रक्षा के लिए भोजन और शरीर-रक्षा के लिए वस्त्र आवश्यक है, वैसे ही वर्षा, सर्दी, गर्मी और आँधी से रक्षा करने के लिए घर भी आवश्यक है। जैन सूत्रों में वत्थुविज्जा ( वास्तुविद्या = गृह-निर्माण कला) की ७२ कलाओं में गणना की गयी है। घर सामान्यतया ईंट और लकड़ी के बनाये जाते थे। घरों में दरवाजे, खम्भे, देहली और संकल-कुंडे रहते थे। इनकी चर्चा आगे चलकर की जायेगी। धनी और समृद्ध लोग आलीशान महलों में निवास करते थे। आमोद-प्रमोद . लोग प्रायः ऐश-आराम से रहते थे, जैसा कि कहा जा चुका है। वे उबटना मलकर स्नान करते, अनेक देशों से लाये हुए बहुमूल्य सुन्दर वस्त्र और आभूषण धारण करते, सुगन्धित मालाओं से अपनेआपको विभूषित करते, भांति-भांति के विशिष्ट व्यंजनों का अस्वादन करते, मद्यपान करते, गोशीष चन्दन, कुंकुम आदि का विलेपन करते, विविध वाद्यों को बजाते, नृत्य करते, नाटक रचाते, सुन्दर गीत गाते, तथा उत्तम गन्ध और रस आदि का उपभोग करत । प्राचीन काल में केशों को काटने और सजाने की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। बालक का जन्म होने पर चोलोपग (चूलो १. बृहत्कल्पभाष्य १. २८८३ श्रादि; ३.३८४७ श्रादि; निशीथभाष्य १.५०८; ११.३४३१-३७ । २. स्वं श्राभरणविहिं, वत्थालंकारभोयणे गंधे । श्राोज्जणट्टणाडग, गीए य मणोरमे सुणिया ।।-निशीथभाष्य १६.५२०४ । तथा देखिए बृहत्कल्पभाष्य १.२५५७ । उदान को टीका परमत्थदीपनी, पृ० ७ में कहा है-सुनहा सुवलित्ता कप्पितकेसमस्तु श्रामुत्तमालाभरणा। ३. रामायण और महाभारत के उल्लेखों के लिए देखिए आर. एल. मित्र, इण्डो-आर्यन, जिल्द २, पृ० २१० आदि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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