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________________ २१२ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [ तृ० खण्ड नगर से तैयार होकर वे आये थे, कुशल शिल्पियों द्वारा प्रशंसित थे, घोड़े के फेन जैसे कोमल थे, कुशल कारीगरों ने उन पर सुनहरे बेलबूटे काढ़े थे, तथा हंस-लक्षण से वे शोभायमान थे । ' लोग दो ही वस्त्र धारण करते थे, एक ऊपर का ( उत्तरीय ) और दूसरा नीचे का ( अन्तरीय ) । उत्तरीय वस्त्र बहुत सुन्दर होता था, उस पर लटकते हुए मोतियों के झूमके लगे रहते थे; अखण्ड वस्त्र से यह बना ( एक शाटिक ) होता था । सीने का रिवाज था । सुई और धागे ( सुईसुत्त) का प्रचार था । साधुओं को अपने फटे हुए वस्त्रों में सीने की अनुज्ञा थी बांस ( वेणूसूइय ), लोहे और सींग की बनी सुइयों का उल्लेख मिलता है ।" फटे हुए कपड़े को अधिक न फटने देने के लिये उसमें गाँठ मार दी जाती थी । जैन साधु और उनके वस्त्र पार्श्वनाथ ने जैन साधुओं के लिए अधोवस्त्र ओर उत्तरीय वस्त्र (सन्तरुत्तर) धारण करने का विधान किया है, यह बात कही जा चुकी है । " जैन साधु को तीन वस्त्र धारण करने की अनुज्ञा थी :- क्षौम के बने दो अधोवस्त्र ( ओमचेल ) तथा ऊन का बना एक उत्तरीय । १. आचारांग, २, भावना अध्ययन, पृ० ३६० । तथा रामायण १.७३.३१ । २. औपपातिक पृ० ४५ । ३. सूत्रकृतांग ४.२.१२ । ४. श्राचारांग २,५.१.३६४ | देखिये चुल्लवग्ग ५.५.१४, पृ० २०४ । विधिपूर्वक सीने के गग्गरग, दंडि, जालग, दुक्खील, एगखील और गोमुत्तिग, तथा विधिपूर्वक सीनेके एगसरिंग, बिसरिग और ऋसंकट ( ऋषकंटक ) नाम के मेद बताये गये हैं, निशीथभाष्य १.७८२, पृ० ६०; बृहत्कल्पभाष्य ३६६२ टीका । ५. निशीथसूत्र १.४०, पृ० ४८; भाष्य ७१८, पृ० ५० | ६. निशीथसूत्र १.५० । ७. उत्तराध्ययनसूत्र २३.२६ ; तथा देखिये मूलसर्वास्तिवाद का विनयवस्तु, पृष्ठ ६४ । ८. आचारांग ७.४.२०८ । बुद्ध ने भी तीन वस्त्र धारण करने की श्रनुज्ञा दी थी - संघाट, उत्तरासंग, अन्तरवासक; महावग्ग ८.१५.२१, पृ० ३०५ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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