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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
[तृ० खण्ड आलि' (दांतों की पंक्ति के समान श्वेत वस्त्र ), पूरिका ( टाट अथवा हाथीकी झूल आदि जो मोटे कपड़े से बुनी गयी हो ), और विरलिका ( दुहरे सूत से बुना हुआ वस्त्र, जैसे दुतई आदि) । स्थानांग सूत्र में पूरिका और विरलिका के स्थान पर पल्हवि अथवा पल्लवि (हाथी की झूल ) और नवयअ ( ऊन को चादर ) का उल्लेख है ।" दूष्यों की दूसरी सूची में उपधान ( अथवा बिब्बोयण; पालि में बिम्बोहन; हंस के रोम अदि का बना तकिया ), तूलो ( पोंजी हुई रूई अथवा आखे को रूई के गद्दे; रजाई आदि ), आलिंगनिका ( पुरुषप्रमाण होती है, जो सोते समय जानु - कोप्पर आदि में लगायी जाती है ), गंडोपधान ( गालों पर रखने के तकिये ), और मसूरक" ( चर्म - वस्त्र से बनाये हुए गोल रूई के गद्दे ) की गणना की गयी है । '
अन्य वस्त्र
तत्पश्चात् शयनीय ( सयणिज्ज ), चादर (रयत्ताण = रजत्त्राण ), गद्दे, तोशक आदि का उल्लेख है। भगवान महावीर की माता त्रिशला की शय्या मनुष्यप्रमाण ( सालिंगणवट्टिओ) गद्दों से शोभित थी, उसके दोनों ओर तकिये ( बिब्बोयण ) लगे थे, दोनों ओर से यह ऊपर को उठो थी और मध्य भाग में पोली थी । यह अत्यन्त कोमल थी, क्षौम और दुकूल वस्त्र से आच्छादित थी, बेलबूटे निकली हुई रजस्त्राण
१. यथा मुखमध्ये यमलितोभयदंतपंक्तिरूपा दाढ़िकालिः - दन्तावलीर्निरीक्ष्यते एवं धौतपोतिकाऽपि द्विजसत्कसदश वस्त्र परिधानरूपा दृश्यमाना दाढिकालिखि प्रतिभाति ।
२. पूर्यते स्तोकैरपि तन्तुभिः पूर्णी भवतीति पूरिका - स्थूलशणगुणमात्मिका या धान्यगोणिका क्रियन्ते हस्ताद्यास्तरणानि वा ।
३. द्विसरसूत्रपाटी ।
४. ३. ३८२३ आदि, तथा टीका ।
५. ४. ३१० टीका, पृ० २२२ ।
६. महावग्ग ५.६. २०, पृ० २११ में भी उल्लेख । उच्चासन और महाशयन के लिये देखिये अंगुत्तरनिकाय १. ३. पृ० १६८ ।
७. महावग्ग १, ( ५. ४. पृ० ३२२ ) और चुल्लवग्ग ( ६. १.४, पृ० २४३ ) में विविध तकियों आदि का उल्लेख है ।
८. बृहत्कल्पभाष्य, ३. ३८२४; निशीथभाष्य १२. ४००१-४००२ ।