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तृ० खण्ड ] चौथा अध्याय : उपभोग निष्पन्न ), आभरणविचित्र' (पत्र, चन्द्रलेखा, स्वस्तिक, घंटिका
और मौक्तिक आदि अनेक नमूनों से निष्पन्न ) आदि वस्त्रों का उल्लेख जैनसूत्रों में उपलब्ध होता है।
व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र में कप्पासिय ( कार्पासिक ), पट्ट, और दुगुल्ल (दुकूल ) के अतिरिक्त, वडग नाम के वस्त्र का भी उल्लेख है। टोकाकार ने इसका अर्थ टसर किया है। अनुयोगद्वार सूत्र में पांच प्रकार के वस्त्रों के नाम गिनाये गये है :-अंडज, बोंडय ( कपास को बॉडी से निष्पन्न ), कोटज ( कीड़ों से निष्पन्न ), वालय (बालों से निष्पन्न ) और वागय ( वृक्षों की छाल से निष्पन्न)।"
दृष्य-एक कीमती वस्त्र दूस अथवा दूष्य कीमती वस्त्र होता था। देवदूस ( देवदूष्य; देवों द्वारा दिया हुआ वस्त्र) का उल्लेख मिलता है। भगवान् महावीर ने जब श्रमण-दीक्षा ग्रहण की तो वे इस वस्त्र को धारण किये हुए थे । इस वस्त्र का मूल्य एक लाख ( सयसहस्स) कूता गया था। विजयदृष्य एक अन्य प्रकार का वस्त्र था जो शंख, कुंद, जलधारा और समुद्रफेन के समान श्वेत वर्ण का होता था।
वृहत्कल्पभाष्य में पाँच प्रकार के दूष्य वस्त्र बताये गये हैं :कोयव (रूई का वस्त्र), पावारग' प्रावारक; कम्बल ), दाढ़ि
१. पत्रिकचंदलेहिकस्वस्तिकघंटिकमौक्तिकमादीहिं मंडिता, वही । २. श्राचारांगसूत्र, वही; निशीथचूर्णी, वही । ३. ११.११, पृ० ५४७ ।
४. सम्भवतः अण्डी नामक वस्त्र; टीकाकारों ने इसका, अर्थ अण्डाज्जातं (अण्डे से उत्पन्न ) किया है।
५. सत्र ३७ ।
६. आवश्यकचूर्णी, पृ० २६८; महावग्ग (८.८.१२ पृ० २६८) में सिवेय्यक वस्त्र का उल्लेख है । यह वस्त्र शिवि देश से श्राता था और एक लाख में मिलता था। मज्झिमनिकाय २, २ पृ० १६ में दुस्सयुग का नाम अाता है।
७. राजप्रश्नीय ४३, पृ० १०० ।८. रूतपूरितः पटः, लोके 'माणिकी' इति प्रसिद्धा । ६. नेपालादिरल्वणसेमा बृहत्कंबलः । . १४ जै० भा०