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________________ २०८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड के समान स्वच्छ वस्त्र ), कोयव' ( कोतव: रुएँदार कम्बल ), कम्बलग (कम्बल ) और पावार (प्रावरण; लबादा) वस्त्रों का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त, उद्द' ( उद्र सिंधु देश में पैदा होने वाले उद्र नामक मत्स्य के चर्म से निष्पन्न ), पेस (सिंधु देश में पैदा होने वाले पशु विशेष के चर्म से निष्पन्न ), पेसल (पेशल; जिस पर पेस चर्म के बेलबूटे कढ़े हों), कण्हमिगाइण ( कृष्णमृगाजिन; कृष्ण मृग के चमें से निष्पन्न ), नीलमिगाजिन ( नीलमृगाजिन; नील मृग के चमे से निष्पन्न ), गोरमिगाजिन (गौरमृगाजिन; गौर भृग के चर्म से निष्पन्न ), कनक (सोने को पिघलाकर उसके रस में रंगे हुए सूत्र से निष्पन्न ). कनककांत (जिसकी किनारियां सोने की भांति चमकती हों), कनकपट्ट (जिसको किनारियाँ सोने की हों), कनकखचित (सुनहले धागे के बेलबूटों वाला वस्त्र), कनकस्पृष्ट (जिसपर सुनहले फूल कढ़े हों), वग्घ ( व्याघ्र-चर्म से निष्पन्न ), विवग्घ ( चीते के चर्म से निष्पन्न ), आभरण (पत्र आदि एक ही प्रकार के नमूनों से १. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति २.३६६२; अनुयोगद्वार सूत्र ३७ की टीका । टीकाकारों के अनुसार यह वस्त्र बकरे अथवा चूहे के बालों से बनाया जाता था । देखिये महावग्ग ८.८.१२ पृ० २६८ । २. तैत्तिरीयसंहिता में उद्र का उल्लेख है, यह एक प्रकार का जल-बिलाव होता था, वेदिक इन्डैक्स, २, पृ० ८९; तथा देखिये कौटिल्य, अर्थशास्त्र २.११ २६.६६ पृ० १६६ । ३. वैदिक युग में, पेस के सुनहले बेलबूटों वाला कलात्मक वस्त्र होता था । पेशकारी स्त्रियों इसे बनाया करती थीं, वेदिक इन्डैक्स २, पृ० २२ । ४. सुवरणे दुते सुत्तं रजति तेण जंकतं, निशीथचूर्णी, वही। ५. कणगेन जस्स पट्टा कता, वही। ६. कणगसुत्तेण फुल्लिया जस्स पाडिया, वही । ७. कणगेण जस्स फुल्लिताउ दिएणाउ । जहा कद्दमेण उड्डेडिज्जति, वही । अंग्रेजी में इसे 'टिन्सल प्रिंटिंग' कहते हैं, इसकी छापने की विधि के लिए देखिए सर जार्ज वाट, इंडियन आर्ट ऐट दिल्ली, १६०३, पृ० २६७ आदि ।::.. ८. पत्रिकादि एकाभरणेन मंडिता, निशीथचूर्णी, वहो ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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